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स्थान ६
आवश्यक है। इस बात को लक्ष्य में लेकर टीकाकार ने स्पष्ट लिखा है अर्थात् भादवा सुदि पांचम को संवत्सरी पर्व मनाना आगम सम्मत है। अनात्मवान् और आत्मवान् के स्थान
छ ठाणा अणत्तवओ अहियाए असुभाए अखमाए अणीसेसाए अणाणुगामियत्ताए भवंति तंजहा - परियार, परियाले, सुए, तवे, लाभे, पूयासक्कारे । छठाणा अत्तवओ हियाए जाव अणुगामियत्ताए भवंति तंजहा - परियाए, परियाले जाव पूयासक्कारे । जति आर्य, कुल आर्य
छविहा जा आरिया मणुस्सा पण्णत्ता तंजहा -
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अंबट्ठा य कलंदा य, वेदेहा वेदिगाइया । हरिया चुंचुणा चेव, छप्पेआ इब्भजाइओ ॥
• छव्विहा कुलारिया मणुस्सा पण्णत्ता तंजहा - उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, णाया, कोरव्वा ।
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लोक स्थिति
छह लोग पण्णत्ता तंजहा- आगासपइट्ठिए वाए, वायपइट्ठिए उदही, उदहि पट्टिया पुढवी, पुढवी पट्टिया तसा थावरा पाणा, अजीवा जीव पइट्ठिया, जीवा कम्म पट्टिया ॥ ४६ ॥
कठिन शब्दार्थ - अणत्तवओ अनात्मवान्, अहियाए - अहितकर असुभाए - अशुभ, अखमाए - अशान्तिकारक, अणीसेसाए - अकल्याणकारक, अणाणुगामियत्ताए - अशुभ बन्ध का कारण, परियाए - पर्याय, परियाले - परिवार, पूयासक्कारे पूजा सत्कार, अत्तवओ - आत्मवान्, अणुगामियत्ता - शुभ बन्ध का कारण, जाइ आरिया जाति आर्य, कुलारिया - कुल आर्य, लोगट्टिईलोक स्थिति, आगासपइट्ठिए- आकाश प्रतिष्ठित, वायपइट्ठिए वायु प्रतिष्ठित, उदहिपट्टिया उदधि प्रतिष्ठित, जीवपइट्टिया - जीव प्रतिष्ठित, कम्म पट्टिया - कर्म प्रतिष्ठित ।
भावार्थ - अनात्मवान् अर्थात् जो आत्मा कषायों के वश होकर अपने स्वरूप को भूल जाता है ऐसे सकषाय आत्मा को अनात्मवान् कहा जाता है । ऐसे व्यक्ति को ये छह बोल प्राप्त होने पर वह अभिमान करने लग जाता है । इसलिए ये बातें उसके लिए अहितकर, अशुभ, अशान्तिकारक अकल्याणकारक और अशुभबन्ध का कारण होती है और ये अभिमान का कारण होने से इहलोक और परलोक को बिगाड़ती है वे इस प्रकार हैं १. पर्याय - दीक्षा पर्याय या उम्र का अधिक होना,
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'भाद्रपद शुक्ला पञ्चम्याम्'
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