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________________ १२४ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 २. परिवार - शिष्य प्रशिष्य आदि की अधिकता, ३. श्रुत - शास्त्रीय ज्ञान का अधिक होना, ४. तप - तपस्या में अधिक होना, ५. लाभ - आहार, पानी, वस्त्र, पात्र आदि की अधिक प्राप्ति, ६. पूजा सत्कार-लोगों द्वारा अधिक आदर सन्मान मिलना । आत्मवान् अर्थात् आत्मार्थी साधु के लिए दीक्षा पर्याय, शिष्य प्रशिष्य आदि का परिवार यावत् पूजा सत्कार ये छह बातें हित के लिए यावत् शुभबन्ध का कारण होती है । छह प्रकार के जाति आर्य यानी विशुद्ध मातृपक्ष वाले मनुष्य कहे गये हैं यथा - अम्बष्ठ, कलिंद, विदेह, वेदिकातिंग हरित और चुञ्चुण । ये छहों इभ्य-जाति वाले होते हैं. । छह प्रकार के कुल आर्य यानी विशुद्ध पितृपक्ष वाले मनुष्य कहे गये हैं यथा - उग्रकुल, भोगकुल, राज्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल कौरव कुल । ___ छह प्रकार की लोकस्थिति कही गई है यथा - आकाशप्रतिष्ठित वायु है, वायु प्रतिष्ठित उदधि है। उदधि प्रतिष्ठित पृथ्वी हैं । पृथ्वी प्रतिष्ठित त्रस स्थावर प्राणी है । जीवों के आधार पर अजीव हैं और जीव कर्म प्रतिष्ठित हैं । विवेचन - अनात्मवान् (सकषाय) के लिए छह स्थान अहितकर होते हैं। जो आत्मा कषाय रहित होकर अपने शुद्ध स्वरूप में अवस्थित नहीं है अर्थात् कषायों के वश होकर अपने स्वरूप को भूल जाता है, ऐसे सकषाय आत्मा को अनात्मवान् कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति को नीचे लिखे छह बोल प्राप्त होने पर वह अभिमान करने लगता है। इसलिए ये बातें उसके लिए अहितकर, अशुभ, पाप तथा दुःख का कारण, अशान्ति करने वाली, अकल्याणकर तथा अशुभ बन्ध का कारण होती हैं। मान का कारण होने से इहलोक और परलोक को बिगाड़ती हैं। वे इस प्रकार हैं - १. पर्याय - दीक्षापर्याय अथवा उम्र का अधिक होना। . .. २. परिवार - शिष्य, प्रशिष्य आदि की अधिकता। ३. श्रुत - शास्त्रीय ज्ञान का अधिक होना। ४. तप - तपस्या में अधिक होना। ५. लाभ- अशन, पान, वस्त्र, पात्र आदि की अधिक प्राप्ति । ६. पूजा सत्कार - जनता द्वारा अधिक आदर, सन्मान मिलना। यही छह बातें आत्मार्थी अर्थात् कषाय रहित साधु के लिए शुभ होती हैं। वह इन्हें धर्म का प्रभाव समझ कर तपस्या आदि में अधिकाधिक प्रवृत्त होता है। जाति - मातृपक्ष को जाति कहते हैं । ., जिस चांदी, सोना, रत्न, हीरा, माणक, मोती आदि धन का ढेर करने पर अम्बाड़ी सहित हाथी उसमें डूब जाय । इतना धन जिसके पास हो वह इभ्य सेठ कहलाता है । पितृपक्ष को कुल कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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