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________________ स्थान ६ ११७ १. सुषम सुषमा - यह आरा चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। इसमें मनुष्यों की अवगाहना तीन कोस की और आयु तीन पल्योपम की होती है। इस आरे में पुत्र पुत्री युगल (जोड़ा) रूप से उत्पन्न होते हैं। बड़े होकर वे ही पति पत्नी बन जाते हैं। युगल रूप से उत्पन्न होने के कारण इस आरे के मनुष्य युगलिया कहलाते हैं। माता पिता की आयु छह मास शेष रहने पर एक युगल उत्पन्न होता है। ४९ दिन तक माता पिता उसकी प्रतिपालना करते हैं। आयु समाप्ति के समय छींक, जंभाई (उबासी) और खांसी इन में से किसी एक के आने पर दोनों काल कर जाते हैं। वे मर कर देवलोक में उत्पन्न होते हैं। इस आरे के मनुष्य दस प्रकार के वृक्षों से मनोवाञ्छित सामग्री पाते हैं। तीन दिन के अन्तर से इन्हें आहार की इच्छा होती है। युगलियों के (स्त्री और पुरुष दोनों के) वप्रऋषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थान होता है। इनके शरीर में २५६ पसलियां होती हैं। युगलिए असि, मसि और कृषि कोई कर्म नहीं करते। - इस आरे में पृथ्वी का स्वाद मिश्री आदि मधुर पदार्थों से भी अधिक स्वादिष्ट होता है। पुष्प और फलों का स्वाद चक्रवर्ती के श्रेष्ठ भोजन से भी बढ़ कर होता है। भूमिभाग अत्यन्त रमणीय होता है और पांच वर्ण वाली विविध मणियों, वृक्षों और पौधों से सुशोभित होता है। सब प्रकार के सुखों से पूर्ण होने के कारण यह आरा सुषमसुषमा कहलाता है। " ___२. सुषमा - यह आरा तीन कोडाकोड़ी सागरोपम का होता है। इसमें मनुष्यों की अवगाहना दो कोस की और आयु दो पल्योपम की होती है। पहले आरे के समान इस आरे में भी युगलधर्म रहता है। पहले आरे के युगलियों से इस आरे के युगलियों में इतना ही अन्तर होता है कि इनके शरीर में १२८ पसलियाँ होती हैं। माता पिता बच्चों का ६४ दिन तक पालन पोषण करते हैं। दो दिन के अन्तर से आहार की इच्छा होती है। यह आरा भी सुखपूर्ण है। शेष सारी बातें स्थूलरूप से पहले आरे जैसी जाननी चाहिएं। अवसर्पिणी काल होने के कारण इस आरे में पहले की अपेक्षा सब बातों में क्रमशः हीनता होती जाती है। ३. सुषम दुषमा - सुषम दुषमा नामक तीसरा आरा दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। इसमें दूसरे आरे की तरह सुख है परन्तु साथ में दुःख भी है। इस आरे के तीन भाग हैं। प्रथम दो भागों में मनुष्यों की अवगाहना एक कोस की और स्थिति एक पल्योपम की होती है। इनमें युगलिए उत्पन्न होते हैं जिनके ६४ पसलियां होती हैं। माता पिता ७९ दिन तक बच्चों का पालन पोषण करते हैं। एक दिन के अन्तर से आहार की इच्छा होती है। पहले दूसरे आरों के युगलियों की तरह ये भी छींक जंभाई तथा खांसी के आने पर काल कर जाते हैं और देवलोक में उत्पन्न होते हैं। शेष विस्तार स्थूल रूप से पहले दूसरे आरों जैसा जानना चाहिए। सुषम दुषमा आरे के तीसरे भाग में छहों संहनन और छहों संस्थान होते हैं। अवगाहना हजार . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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