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________________ ११० श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 __ जो तारे के आकार वाले ग्रह हैं वे तारक ग्रह कहलाते हैं। लोक में नौ ग्रह प्रसिद्ध है जिसमें चन्द्र, सूर्य और राहु तारे जैसे आकार के नहीं होने से उनका यहां ग्रहण नहीं किया है। शेष छह ग्रह तारा रूप कहे हैं। यथा - शुक्र, बुध, वृहस्पति, मंगल, शनिश्चर और केतु। ये छह ग्रह तारे के जैसे आकार वाले कहे गये हैं। ज्ञानी सूत्र में मिथ्यात्व युक्त ज्ञान वाले को अज्ञानी कहा है जो तीन प्रकार के हैं। मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और अवधि अज्ञानी (विभंग ज्ञानी)। इन्द्रिय सूत्र में अनिन्द्रिय अर्थात् अपर्याप्त; केवली और सिद्ध। जब तक जीव इन्द्रिय पर्याप्ति पूरी नहीं कर लेता तब तक वह अनिन्द्रिय होता है। केवली में द्रव्येन्द्रिय का सद्भाव होने पर भी क्षायोपशमिक भाव रूप इन्द्रियों का अभाव होने से केवली अनिन्द्रिय कहलाते हैं। . दुर्लभ स्थान, इन्द्रिय विषय, सुख-दुःख .. ___छ हाणाई सव्वजीवाणं णो सुलभाई भवंति तंजहा - माणुस्सए भवे, आयरिए खित्ते जम्मं, सुकुले पच्चायाई, केवलिपण्णत्तस्स धम्मस्स सवणया, सुयस्स वा सद्दहणया, सद्दहियस्स वा, पत्तियस्स वा, रोइयस्स वा सम्मं काएणं फासणया। छ इंदियत्था पण्णत्ता तंजहा - सोइंदियत्थे जाव फासिंदियत्थे णोइंदियत्थे। छविहे संवरे पण्णत्ते तंजहा-सोइंदिय संवरे जाव फासिंदिय संवरे णोइंदिय संवरे। छविहे असंवरे पण्णत्ते तंजहा - सोइंदिय असंवरे जाव फासिंदिय असंवरे णोइंदिय असंवरे । छविहे साए पण्णत्ते तंजहा - सोइंदिय साए जाव फासिंदिय साए णोइंदिय साए । छविहे असाए पण्णत्ते तंजहा - सोइंदिय असाए जाव फासिंदिय असाए णोइंदिय असाए। प्रायश्चित्त भेद छविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते तंजहा - आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउस्सग्गारिहे, तवारिहे॥४४॥ कठिन शब्दार्थ- सुलभाई- सुलभ, आयरिए - आर्य, खित्ते - क्षेत्र में, जम्मं - जन्म, सुकुलेसुकुल-उत्तम कुल में, पच्चायाई - उत्पन्न होना, सवणया - सुनना, सद्दहियस्स - श्रद्धा किये हुए के, पत्तियस्स - प्रतीति किये हुए के, रोइयस्स - रुचि किये हुए.के, फासणया - स्पर्शना-आचरण करना, णोइंदियत्थे - नो इन्द्रियार्थ-नोइन्द्रिय यानी मन का विषय, साए - साता, पायच्छित्ते - प्रायश्चित्त, आलोयणारिहे - आलोचनाह, पडिक्कमणारिहे - प्रतिक्रमणार्ह, तदुभयारिहे - तदुभयाह, विवेगारिहेविवेकाह, विउस्सग्गारिहे - व्युत्सगार्ह, तवारिहे - तपार्ह । भावार्थ - सब जीवों को छह स्थानों की प्राप्ति होना सुलभ नहीं है यथा - मनुष्य भव, आर्य क्षेत्र यानी साढे पच्चीस आर्य देशों में जन्म, उत्तम कुल में उत्पन्न होना, केवलि प्ररूपित धर्म को सुन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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