________________
• स्थान ६
१०९
कहे गये हैं । यथा - एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय । अथवा दूसरी तरह से सब जीव छह प्रकार के कहे गये हैं । यथा - औदारिक शरीर वाले, वैक्रिय शरीर वाले, आहारक शरीर वाले, तैजस शरीर वाले, कार्मण शरीर वाले और अशरीरी यानी सिद्ध । तृण वनस्पतिकाय अर्थात् बादर वनस्पतिकाय छह प्रकार की कही गई है । यथा - अग्रबीज - जिस वनस्पतिकाय का अग्रभाग बीज रूप होता है जैसे कोरण्टक आदि । अथवा जिस वनस्पति का बीज अग्रभाग पर होता है जैसे गेहूँ, जौ, धान आदि । मूलबीज-जिस वनस्पति का मूल भाग बीज का काम देता है, जैसे कमल आदि । पर्वबीज - जिस वनस्पति का पर्वभाग यानी गांठ बीज का काम देता है, जैसे ईख आदि । स्कन्धबीज - जिस वनस्पति का स्कन्ध भाग बीज का काम देता है, जैसे शल्लकी आदि। बीजरुह - बीज से उगने वाली वनस्पति जैसे शालि आदि। सम्मच्छिम-जिस वनस्पति का प्रसिद्ध कोई बीज नहीं है और जो वर्षा आदि के समय यों ही उग जाती है, जैसे घास आदि । - विवेचन - चार घाती कर्मों का सर्वथा क्षय करके जो मनुष्य सर्वज्ञ और सर्वदर्शी नहीं हुआ है, उसे छद्मस्थ कहते हैं। यहां पर छदस्थ पद से विशेष अवधि या उत्कृष्ट ज्ञान से रहित व्यक्ति लिया जाता है। ऐसा व्यक्ति नीचे लिखी छह बातों को नहीं देख सकता -१. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. शरीर रहित जीव ५. परमाणु पुद्गल ६. शब्द वर्गणा के पुद्गल।
नोट - परमावधिज्ञानी परमाणु और भाषावर्गणा के पुद्गलों को देख सकता है, इसीलिए यहां . छवस्थ शब्द से विशेष अवधि या उत्कृष्ट ज्ञान से शून्य व्यक्ति लिया गया है।
- जीव निकाय छह - निकाय शब्द का अर्थ है राशि। जीवों की राशि को जीवनिकाय कहते हैं। यही छह काय शब्द से भी प्रसिद्ध हैं। शरीर नाम कर्म के उदय से होने वाली औदारिक और वैक्रिय पुद्गलों की रचना और वृद्धि को काय कहते हैं। काय के भेद से जीव भी छह प्रकार के हैं। जीव निकाय के छह भेद इस प्रकार हैं -
१. पृथ्वीकाय - जिन जीवों का शरीर पृथ्वी रूप है वे पृथ्वीकाय कहलाते हैं। २. अप्काय- जिन जीवों का शरीर जल रूप है वे अकाय कहलाते हैं। ३. तेजस्काय - जिन जीवों का शरीर अग्नि रूप है वे तेजस्काय कहलाते हैं। ४.वायुकाय - जिन जीवों का शरीर वायु रूप है वे वायुकाय कहलाते हैं। ५. वनस्पतिकाय - वनस्पति रूप शरीर को धारण करने वाले जीव वनस्पतिकाय कहलाते हैं।
ये पांचों ही स्थावर काय कहलाते हैं। इनके केवल स्पर्शन इन्द्रिय होती है। ये शरीर इन जीवों को स्थावर नाम कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं।
६. सकाय - त्रस नाम कर्म के उदय से चलने फिरने योग्य शरीर को धारण करने वाले द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव त्रसकाय कहलाते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org