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________________ छठा स्थान पांचवें अध्ययन में जीवों की पर्यायों का कथन किया गया है। छठे अध्ययन में भी इसी विषय का वर्णन किया जाता है - गणी के गुण छहिं ठाणेहिं संपणे अणगारे अरिहइ गणं धारित्तए तंजहा सड्डी पुरिसजाए, सच्चे पुरिसजाए, मेहावी पुरिसजाए, बहुस्सुए, पुरिसजाए, सत्तिमं, अप्पाहिगरणे । अवलंबन के कारण छहिं ठाणेहिं णिग्गंथे णिग्गंथिं गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ तंजहा - खित्तचित्तं दित्तचित्तं, जक्खाइट्ठ, उम्मायपत्तं, उवसग्गपत्तं, साहिगरणं । छहिं ठाणेहिं णिग्गंथा णिग्गंथीओ य साहम्मियं कालगयं समायरमाणा णाइक्कमंति तंजा - अंतोर्हितो वा बाहिं णीणेमाणा, बाहिहिंतो वा णिब्बाहिं णीणेमाणा, उवेहमाणा वा, उवासमाणा वा, अणुण्णवेमाणा वा, तुसिणीए वा संपव्वयमाणा ॥ ४२ ॥ कठिन शब्दार्थ- सड्डी पुरिसजाए - श्रद्धा सम्पन्न पुरुष, बहुस्सुए - बहुश्रुत, सत्तिमं शक्तिमान, अप्पाहिगरणे अल्प धिकरण वाला, साहिगरणं - साधिकरण-क्रोध वाला, साहम्मियं साधर्मिक, समायरमाणा आचरण करते हुए, णीणेमाणा - निकालते हुए । भावार्थ - छह गुणों वाला साधु गण को धारण कर सकता है अर्थात् साधु समुदाय को मर्यादा में रख सकता है। वे छहं गुण ये हैं श्रद्धा सम्पन्नता गण को धारण करने वाला दृढ़ श्रद्धालु अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्पन्न होना चाहिए। श्रद्धालु स्वयं मर्यादा में रहता है और दूसरों को मर्यादा में रख सकता है। सत्यसम्पन्नता - सत्यवादी एवं प्रतिज्ञाशूर मुनि गणपालक होता है। उसके वचन विश्वसनीय और ग्रहण करने योग्य होते हैं। मेधाविपन मर्यादा को समझने वाला अथवा श्रुतग्रहण की शक्ति वाला एवं दृढ़ धारणा वाला बुद्धिमान् पुरुष मेधावी कहलाता है । मेधावी साधु दूसरे साधुओं से मर्यादा का पालन करा सकता है तथा दूसरे से विशेष श्रुतज्ञान ग्रहण करके शिष्यों को पढ़ा सकता है। बहुश्रुतता - बहुश्रुत साधु अपने गण में ज्ञान की वृद्धि कर सकता है। वह स्वयं शास्त्र सम्मत क्रियाओं का पालन करता है और दूसरे साधुओं से भी पालन करवाता है। शक्तिमत्ता - शरीरादि का सामर्थ्य सम्पन्न होना जिससे आपत्तिकाल में अपनी और गण की रक्षा कर सकता है। अल्पाधिकरणता - अल्पाधिकरण अर्थात् स्वपक्षसम्बन्धी या परपक्षसम्बन्धी लड़ाई झगड़े से रहित साधु शिष्यों की अनुपालना भली प्रकार कर सकता है। Jain Education International - - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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