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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण दिशा में गंगा महानदी में पांच महानदियां आकर मिलती हैं । यथा - यमुना, सरयू, आदी, कौशी और मही । जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिण दिशा में सिन्धु महानदी में पांच महानदियां आकर मिलती हैं । यथा - शतद्रू, विभाषा, वितत्था, ऐरावती और चन्द्रभागा । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर दिशा में रक्ता महानदी में पांच महानदियाँ आकर मिलती हैं। यथा - कृष्णा, महाकृष्णा, नीला, महानीला और महातीरा । जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के उत्तर में दिशा में रक्तावती महानदी में पांच महानदियाँ आकर मिलती हैं । यथा - इन्द्रा, इन्द्रसेना, सुसेना, वारिसेना और महाभोगा । पांच तीर्थकर कुमारवास में रह कर यानी राज्य लक्ष्मी का भोग न करके मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुए थे । यथा - वासुपूज्य स्वामी, मल्लिनाथ स्वामी, अरिष्ट नेमिनाथ स्वामी, पार्श्वनाथ स्वामी और भगवान् महावीर स्वामी ।
चमरचञ्चा राजधानी में पांच सभाएं कही गई हैं । यथा - सुधर्मा सभा, उपपात सभा, अभिषेक सभा, अलङ्गार सभा, व्यवसाय सभा । प्रत्येक इन्द्र के स्थान में पांच सभाएं कही गई हैं । यथा - सुधर्मा सभा यावत् व्यवसाय सभा । पांच नक्षत्र पांच पांच तारों वाले कहे गये हैं । यथा - धनिष्ठा, रोहिणी, पुनर्वसु हस्त और विशाखा ।
सब जीवों ने पांच स्थान निर्वर्तित पुद्गलों को पापकर्म रूप से उपार्जन किये हैं, उपार्जन करते हैं और उपार्जन करेंगे । यथा - एकेन्द्रिय निर्वर्तित यावत् पञ्चेन्द्रिय निर्वर्तित । इसी प्रकार चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदन और निर्जरा । इनके लिए भूत भविष्यत और वर्तमान तीनों काल सम्बन्धी बात कह देनी चाहिए । पंचप्रदेशावगाढ अर्थात् पांच प्रदेशों को अवगाहित करने वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं । यावत् पांच गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं।
विवेचन - 'कुमार' शब्द का अर्थ टीका में इस प्रकार किया है - "कुमाराणां अराजभावेन वासः कुमारवासः"
अर्थात् - जिनका राज्याभिषेक नहीं हुआ है यानी जिन्होंने राज्यलक्ष्मी का भोग नहीं किया है । ऐसी अवस्था में रहना कुमारवास कहलाता है। यहाँ 'कुमार' शब्द का ब्रह्मचारी अर्थ नहीं है । भगवान् मल्लिनाथ और भगवान् नेमिनाथ ये दो तीर्थंकर ही ऐसे थे, जिन्होंने विवाह नहीं किया था । अविवाहित ही दीक्षित हुए थे ।
नोट - वासुपूज्य, मल्लि, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर ये पांच तीर्थङ्कर अविवाहित धे ऐसी दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है। हरिभद्रसूरि आदि टीकाकारों की भी ऐसी ही मान्यता है।
॥पांचवें स्थान का तीसरा उद्देशक समाप्त ।। ॥ पांच स्थान रूप पांचवां अध्ययन समाप्त ॥
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