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________________ स्थान ५ उद्देशक ३ १०३ तथा तीखे, कडवे, कषैले, खट्टे और मीठे इन पांच रसों वाले पुद्गल भूत काल में बांधे हैं और वर्तमान काल में बांधते हैं तथा आगामी काल में बांधेगे।.. पांच महानदियाँ ___ जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे गंगा महाणईं पंच महाणईओ समप्यति तंजहा - जउणा, सरऊ, आई, कोसी, मही । जंबूमंदरस्स दाहिणेणं सिंधु महाणई पंच महाणईओ समति तंजहा - सय विभासा, वित्तथा, एरावई, चंदभागा। जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रत्ता महाणई पंच महाणईओ समप्यति तंजहा - किण्हा, महाकिण्हा, णीला, महाणीला, महातीरा । जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तावई महाणईं पंच महाणईओ समप्पेंति तंजहा - इंदा, इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा, महाभोया । कुमारवास में प्रव्रजित तीर्थंकर पंच तित्थयरा कुमारवास माझे वसित्ता मुंडा जाव पव्वइया तंजहा - वासुपुज्जे, मल्ली, अरिट्ठणेमी, पासे, वीरे। , - पांच सभाएँ, पांच तारों वाले नक्षत्र . चमरचंचाए रायहाणीए पंच सभाओ पण्णत्ताओ तंजहा - सुहम्मा सभा, उववाय सभा, अभिसेय सभा, अलंकारिय सभा, ववसाय सभा । एगमेगे णं इंदट्ठाणे पंच सभाओ पण्णत्ताओ तंजहा - सुहम्मा सभा - जाव ववसाय सभा । पंच णक्खत्ता पंच तारा पण्णत्ता तंजहा - धणिट्ठा, रोहिणी, पुणव्वसू, हत्थो, विसाहा । . पापकर्म-संचित पुद्गल जीवा णं पंच द्वाण णिव्यत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा तंजहा- एगिंदिय णिव्वत्तिए जाव पंचिंदिय णिव्वत्तिए । एवं चिण, उवचिणे, बंध, उदीर, देय तह णिजरा चेव । पंच पएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता । पंच पएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव पंच गुण लुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता॥४१॥ पंचमट्ठाणस्स तईओ उद्देसो समत्तो । पंचमज्झयणं समत्तं । कठिन शब्दार्थ - समप्यति - आकर मिलती हैं, कुमारवास मज्झे - कुमारवास में, उववाय सभा - उपपात सभा, अभिसेय सभा - अभिषेक सभा, अलंकारिय सभा - अलंकार सभा, ववसाय सभा - व्यवसाय सभा, इंदट्ठाणे - इन्द्र के स्थान में, सुहम्मा - सुधर्मा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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