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स्थान ५ उद्देशक ३
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महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अप्पइट्ठाणे । अलोए णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाविमाणा पण्णत्ता तंजहा - विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए, सव्वट्ठसिद्धे ।
___पांच प्रकार के पुरुष पंच पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते, उदयणसत्ते
मत्स्य और भिक्षुक पंच मच्छा पण्णत्ता तंजहा - अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मझचारी, सव्वसोयचारी । एवमेव पंच भिक्खागा पण्णत्ता तंजहा - अणुसोयचारी जाव सव्वसोयचारी।
वनीपक पंच वणीमगा पण्णत्ता तंजहा - अतिहि वणीमगे, किविण वणीमगे, माहण वणीमगे, साण वणीमगे, समण वणीमगे॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - छमत्थे - छयस्थ, सव्वभावेणं - सर्वभाव से, असरीरपडिबद्धं जीवं - शरीर रहित जीव, महति महालया - सब से बड़े, उदयणसत्ते - उदयसत्व, सव्यसोयचारी - सर्वस्रोतचारी, वणीममा - वनीपक, किविण वणीमगे - कृपण वनीपक, साण वणीमगे - श्वा वनीपक। - भावार्थ - अवधिज्ञान आदि से रहित छद्मस्थ पांच बातों को सर्वभाव से यानी अनन्त पर्यायों सहित एवं साक्षात् रूप से न जानता है और न देखता है यथा - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित जीव और परमाणु पुद्गल । धर्मास्तिकाय से लेकर परमाणु पुद्गल तक इन उपरोक्त पांचों को केवलज्ञान केवलदर्शन के धारक अरिहन्त जिन केवली सब पर्यायों सहित साक्षात् रूप से जानते और देखते हैं। ..
- अधोलोक में पांच प्रधान यानी उत्कृष्ट वेदना वाले और सब से बड़े महानरकावास कहे गये हैं यथा .- काल, महाकाल, रोरुक, महारोरुक और अप्रतिष्ठान । ऊर्ध्वलोक में पांच प्रधान और सब से बड़े महाविमान कहे गये हैं यथा - विजय, वैजयंत, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थ सिद्ध। .
पांच प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - हीसत्व यानी लण्णा से परीषह उपसर्गादि में दृढता रखने वाला, ही मनःसत्व यानी लज्जा से परीषह उपसर्गादि में मन से दृढ रहने वाला, चलसत्व यानी परीषह उपसर्गादि में चलित हो जाने वाला, स्थिर सत्व यानी दृढ़ रहने वाला और उदयसत्व यानी परीषह उपसर्गादि में जिसकी दृढ़ता बढती जावे।
पांच प्रकार के मच्छ कहे गये हैं यथा - अनुस्रोतचारी यानी पानी के प्रवाह के अनुकूल चलने
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