________________
८६
श्री स्थानांग सूत्र
सांसारिक निधि के पाँच भेद - विशिष्ट रत्न सुवर्णादि द्रव्य जिसमें रखे जाय ऐसे पात्रादि को निधि कहते हैं। निधि की तरह जो आनन्द और सुख के साधन रूप हों उन्हें भी निधि ही समझना चाहिए। निधि पांच हैं - १. पुत्र निधि २. मित्र निधि ३. शिल्प निधि ४. धन निधि ५. धान्य निधि। .
१. पुत्र निधि - पुत्र स्वभाव से ही माता पिता के आनन्द और सुख का कारण है तथा द्रव्य का उपार्जन करने से निर्वाह का भी हेतु है। अत: वह निधि रूप है।
२. मित्र निधि - मित्र, अर्थ और काम का साधक होने से आनन्द का हेतु है। इसलिये वह भी निधि रूप कहा गया है। .. ३. शिल्प निधि - शिल्प का अर्थ है चित्रादि ज्ञान । यहाँ शिल्प का आशय सब विद्याओं से हैं। वे पुरुषार्थ चतुष्टय की साधक होने से आनन्द और सुख रूप हैं। इसलिये शिल्प-विद्या निधि कही गई है।
४.धन निधि और ५. धान्य निधि वास्तविक निधि रूप हैं ही।। निधि के ये पांचों प्रकार द्रव्य निधि रूप हैं। और कुशल अनुष्ठान का सेवन भाव निधि है।
शौच (शुद्धि) - शौच अर्थात् मलीनता दूर करने रूप शुद्धि के पाँच प्रकार हैं - १. पृथ्वी शौच २. जल शौच ३. तेजः शौच ४. मन्त्र शौच ५. ब्रह्म शौच।
१. पृथ्वी शौच - मिट्टी से घृणित मल और गन्ध का दूर करना पृथ्वी शौच है। २. जलः शौच - पानी से धोकर मलीनता दूर करना जल शौच है। ३. तेजःशौच - अग्नि एवं अग्नि के विकार स्वरूप भस्म से शुद्धि करना तेजः शौच है। ४. मन्त्र शौच - मन्त्र से होने वाली शुद्धि मन्त्र शौच है।
५. ब्रह्म शौच - ब्रह्मचर्यादि कुशल अनुष्ठान, जो आत्मा के काम कषायादि आभ्यन्तर मल की शुद्धि करते हैं, ब्रह्मशौच कर लाते हैं। सत्य, तप, इन्द्रिय निग्रह एवं सर्व प्राणियों पर दया भाव रूप शौच का भी इसी में समावेश होता है। ... इनमें पहले के चार शौच द्रव्य शौच हैं और ब्रह्म शौच भाव शौच है।
छद्मस्थ केवली ___पंच ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणइ ण पासइ तंजहा - धम्मत्थिकार्य, अधम्मत्थिकायं, आगासत्यिकायं, जीवं असरीर पडिबद्धं, परमाणु पोग्गलं । एयाणि चेव उप्पण्ण णाण दंसणधरे अरहा जिणे. केवली सव्व भावेणं जाणइ पासइ धम्मत्यिकायं जाव परमाणुपोग्गलं ।
महानरकावास, महाविमान " अहोलोए णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाणिरया पण्णत्ता तंजहा - काले,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org