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स्थान ५ उद्देशक ३
भावार्थ - श्रुतचारित्र रूप धर्म का सेवन करने वाले पुरुष के पांच निश्रास्थान यानी आलम्बन - उपकारक कहे गये हैं यथा - छहकाया - पृथ्वी आधार रूप है । वह सोने, बैठने, उपकरण रखने परिठवने आदि क्रियाओं में उपकारक है । जल - पीने, वस्त्र पात्रादि धोने आदि उपयोग में आता है । अग्नि से अचित्त बने हुए आहार, गर्म पानी आदि साधु साध्वियों के काम में आते हैं । श्वासोच्छ्वास लेने में वायु का उपयोग होता है । शय्या, आसन, पात्र आदि तथा आहार औषधि द्वारा वनस्पति धर्म का पालन करवाने में उपकारक है । त्रस जीव - शिष्य श्रावक आदि भी धर्मपालन में उपकारक है । इस प्रकार छहों काया धर्म के पालन में सहायक होती है । गण - गुरु के परिवार को गण या गच्छ कहते हैं । विनय करने से गच्छवासी साधु को महानिर्जरा होती है तथा सारणा वारणा आदि से उसे दोषों की प्राप्ति नहीं होती है । गच्छवासी साधु एक दूसरे को धर्मपालन में सहायता करते हैं। राजा - राजा दुष्टों से साधु पुरुषों की रक्षा करता है । इसलिए राजा धर्मपालन में सहायक होता है । गृहपति - शय्यादाता- रहने के लिए स्थान देने से संयमोपकारी होता है । शरीर - धार्मिक क्रिया अनुष्ठानों का पालन शरीर द्वारा ही होता है । इसलिए शरीर धर्मपालन में सहायक होता है। ___पांच निधि कही गई है यथा - पुत्रनिधि, मित्रनिधि, शिल्पनिधि, धननिधि और धान्यनिधि । पांच प्रकार की शौच (शनि) कही गई है यथा - पृथ्वीशौच, जलशौच, अग्निशौच, मन्त्रशौच और ब्रह्मचर्यशौच ।
विवेचन - श्रुत चारित्र रूप धर्म का सेवन करने वाले पुरुष के पांच स्थान आलम्बन रूप हैं अर्थात् उपकारक हैं - १. छह काया २. गण ३. राजा ४. गृहपति ५. शरीर। . १. छह काया - पृथ्वी आधार रूप है। वह सोने, बैठने, उपकरण रखने, परिठवने आदि क्रियाओं में उपकारक है। जल पीने, वस्त्र पात्र धोने आदि उपयोग में आता है। आहार, ओसावन, गर्म पानी आदि में अग्नि काय का उपयोग है। जीवन के लिये वायु की अनिवार्य आवश्यकता है। संथारा, पात्र, दण्ड, वस्त्र, पीड़ा, पाटिया वगैरह उपकरण तथा आहार औषधि आदि द्वारा वनस्पति धर्म पालन में उपकारक होती है। इसी प्रकार त्रस जीव भी धर्म-पालन में अनेक प्रकार से सहायक होते हैं। ____२. गण - गुरु के परिवार को गण या गच्छ कहते हैं। गच्छवासी साधु को विनय से विपुल निर्जरा होती है तथा सारणा, वारणा आदि से उसे दोषों की प्राप्ति नहीं होती। गच्छवासी साधु एक दूसरे को धर्म पालन में सहायता करते हैं। .... ३. राजा - राजा दुष्टों से साधु पुरुषों की रक्षा करता है। इसलिए राजा धर्म पालन में सहायक होता है।
४. गृहपति (शय्यादाता) - रहने के लिये स्थान देने से संयमोपकारी होता है।
५.शरीर - धार्मिक क्रिया अनुष्ठानों का पालन शरीर द्वारा ही होता है। इसलिए शरीर धर्म पालन में सहायक होता है।
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