SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 को प्राप्त नहीं कर सकता है। ३. गृहस्थावस्था का त्याग कर साधुपने को अंगीकार नहीं कर सकता है ४. शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता है ५. शुद्ध संयम का पालन नहीं कर सकता है ६. आस्रवों को नहीं रोक सकता है ७-११ पांच ज्ञानों (१. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मनःपर्यवज्ञान और ५. केवलज्ञान) को प्राप्त नहीं कर सकता है। दो ठाणाई परियाणित्ता आया केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज सवणयाए तंजहां - आरंभे चेव परिग्गहे चेव एवं जाव केवलणाणं उप्पाडेजा। दोहिं ठाणेहिं आया लभेज सवणयाए तंजहा - सोच्च चेव अभिसमिच्च चेव जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा॥१८॥ ___ कठिन शब्दार्थ - सोच्च - सुन कर, अभिसमिच्च - जान कर एवं श्रद्धा कर। .../ भावार्थ - आरम्भ और परिग्रह, इन दो स्थानों के स्वरूप को जानकर और छोड़कर आत्मा केवलिप्ररूपित धर्म को सुन सकता है। इसी प्रकार यावत् सम्यक्त्व, मुण्डपना, ब्रह्मचर्य, संयम, संवर, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान को प्राप्त कर सकता है। दो स्थानों से आत्मा केवलिप्ररूपित धर्म को श्रवण कर सकता है जैसे कि - सुन कर और उस पर श्रद्धा करके अर्थात् शास्त्रश्रवण और श्रद्धा, इन दो कारणों से आत्मा को धर्मश्रवण यावत् केवलज्ञान, इन उपरोक्त ग्यारह बातों की प्राप्ति हो सकती है। • विवेचन - आरंभ और परिग्रह को ज्ञ परिज्ञा से जान कर और प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्यागने वाला जीव १. केवली प्ररूपित धर्म सुनने २. बोधि प्राप्त करने ३. गृहस्थावास छोड़ कर साधु होने ४. ब्रह्मचर्य पालन करने ५. विशुद्ध संयम पालन करने ६. संवर प्राप्त करने ७. शुद्ध मतिज्ञान ८. श्रुतज्ञान ९. अवधिज्ञान १०. मनःपर्यवज्ञान और ११. केवलज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होता है। शास्त्र श्रवण कर और उस पर श्रद्धा करके जीव को इन ११ बोलों की प्राप्ति हो सकती है। दो समाओ पण्णत्ताओ तंजहा - उस्सप्पिणी समा चेक, ओसप्पिणी समा चेव। दुविहे उम्माए पण्णत्ते तंजहा जक्खावेसे चेव मोहणिजस्स चेव कम्मस्स उदएणं, तत्थ णं जे से जक्खावेसे से णं सुहवेयतराए चेव, सुहविमोयतराए चेव, तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं से णं दुहवेयतराए चेव दुहविमोयतराए चेव। दो दंडा पण्णत्ता तंजहा - अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव। णेरइयाणं दो दंड्य पण्णत्ता तंजहा-अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव। एवं चउवीस्स दंडओ जाव वेमाणियाणं १९ । कठिन शब्दार्थ - समाओ - समा-काल, दुविहे - दो प्रकार का, उम्माए - उन्माद, जक्खावेसे- यक्षावेश, मोहणिजस्स कम्मस्स - मोहनीय कर्म के, उदएणं - उदय से, सुहवेयतराए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy