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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - अनन्तर सिद्धों के पन्द्रह भेद इस प्रकार हैं -
१. तीर्थ सिद्ध - जिससे संसार समुद्र तिरा जाय वह तीर्थ कहलाता है। अर्थात् जीव अजीव आदि पदार्थों की प्ररूपणा करने वाले तीर्थंकर भगवान् के वचन और उन वचनों को धारण करने वाला चतुर्विध संघ (साधु साध्वी श्रावक श्राविका) तथा प्रथम गणधर तीर्थ कहलाते हैं। इस प्रकार तीर्थ की मौजूदगी में जो सिद्ध होते हैं वे तीर्थ सिद्ध कहलाते हैं। जैसे गौतम स्वामी आदि।
२. अतीर्थ सिद्ध - तीर्थ की स्थापना होने से पहले अथवा बीच में तीर्थ का विच्छेद होने पर जो सिद्ध होते हैं वे अतीर्थ सिद्ध कहलाते हैं। जैसे मरुदेवी माता आदि। मरुदेवी माता तीर्थ की स्थापना होने से पहले ही मोक्ष चली गई थी। भगवान् सुविधिनाथ से लेकर भगवान् शान्तिनाथ तक आठ तीर्थंकरों के बीच सात अन्तरों में तीर्थ का विच्छेद हो गया था। इस विच्छेद काल में जो जीव मोक्ष गये वे अतीर्थ सिद्ध कहलाते हैं।
३. तीर्थंकर सिद्ध - तीर्थंकर पद को प्राप्त करके मोक्ष जाने वाले जीव तीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे भगवान् ऋषभदेव आदि। . ___४. अतीर्थंकर सिद्ध - सामान्य केवली हो कर मोक्ष जाने वाले जीव अतीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे गौतमस्वामी जम्बूस्वामी आदि।
५. स्वयंबुद्ध सिद्ध - दूसरे के उपदेश के बिना स्वयमेव बोध प्राप्त करके मोक्ष जाने वाले स्वयंबुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। जैसे कपिल आदि।
६. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध - जो किसी के उपदेश के बिना ही किसी एक पदार्थ को देख कर वैराग्य को प्राप्त होते हैं और दीक्षा लेकर मोक्ष जाते हैं वे प्रत्येक बुद्ध कहलाते हैं। जैसे - करकण्डू, नमिराज ऋषि आदि।
शंका - स्वयंबुद्ध और प्रत्येक बुद्ध में क्या अन्तर है ? __समाधान - स्वयंबुद्ध और प्रत्येक बुद्ध में परस्पर बोधि, उपधि, श्रुत और लिंग के विषय में इस प्रकार अन्तर होता है - १. बोधिकृत विशेषता - स्वयंबुद्ध को बाहरी निमित्त के बिना ही जातिस्मरण आदि ज्ञान से वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। स्वयंबुद्ध दो प्रकार के होते हैं। तीर्थंकर और तीर्थंकर व्यतिरिक्त। यहाँ पर तीर्थंकर व्यतिरिक्त लिये जाते हैं क्योंकि तीर्थंकर स्वयंबुद्ध तो तीर्थंकर सिद्ध में गिन लिये जाते हैं। प्रत्येक बुद्ध को बैल, चुड़ी आदि बाहरी कारणों को देखने से वैराग्य उत्पन्न होता है और दीक्षा लेकर वे अकेले ही विचरते हैं। २. उपधिकृत विशेषता - स्वयंबुद्ध वस्त्र पात्र आदि बारह प्रकार की उपधि (उपकरण) रखने वाले होते हैं। और प्रत्येक बुद्ध जघन्य दो प्रकार की और उत्कृष्ट ९ प्रकार की उपधि रखने वाले होते हैं। वे वस्त्र नहीं रखते किन्तु रजोहरण व मुखवस्त्रिका तो रखते ही हैं क्योंकि रजोहरण व मुखवस्त्रिका ये मुनि के मुख्य चिह्न और मुख्य
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