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स्थान १ उद्देशक १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000 धर्मोपकरण है, इनके बिना कोई जैन मुनि नहीं होता इनके बिना मुनिपणा नहीं टिकता है। प्रज्ञाप सूत्र की टीका में तो रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका भी आवश्यक नहीं बताई गई है। ३-४. श्रुत और लिंग (बाय वेश) की विशेषता - स्वयंबुद्ध दो तरह के होते हैं-एक तो वे जिनको पूर्वजन्म का ज्ञान इस जन्म में भी उपस्थित हो जाता है और दूसरे वे जिनको पूर्वजन्म का ज्ञान इस जन्म में उपस्थित नहीं होता है। पूर्वजन्म के ज्ञान वाले स्वयंबुद्ध गुरु के पास जाकर लिंग (वेश) धारण करते हैं और नियमित रूप से गच्छ में रहते हैं। दूसरे प्रकार के स्वयंबुद्ध गुरु के पास जाकर वेश स्वीकार करते हैं अथवा उनको देवता वेश दे देता है। यदि वे अकेले विचरने में समर्थ हों और अकेले विचरने की इच्छा हो तो अकेले विचर सकते हैं अन्यथा गच्छ में रहते हैं। प्रत्येक बुद्ध को पूर्व जन्म का ज्ञान इस जन्म अवश्य उपस्थित हो जाता है। वह ज्ञान जघन्य ग्यारह अंग का और उत्कृष्ट कुछ कम दस पूर्व का होता है। दीक्षा लेते समय देवता उन्हें वेश देते हैं अथवा वे लिंग रहित भी होते हैं किन्तु रजोहरण और मुखवस्त्रिका तो रखते ही हैं। . ७. बुद्धबोधित सिद्ध - आचार्य आदि के उपदेश से बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले बुद्धबोधित सिद्ध कहलाते हैं । जैसे जम्बूस्वामी आदि।
८. स्त्रीलिंग सिद्ध - स्त्रीलिंग से अर्थात् स्त्री की आकृति रहते हुए मोक्ष जाने वाले स्त्रीलिंग सिद्ध कहलाते हैं। यहाँ स्त्रीलिंग स्त्रीत्व का सूचक है। स्त्रीत्व (स्त्रीपणा) तीन प्रकार का बतलाया गया है यथा - १. वेद २. शरीराकृति ३. वेश। यहाँ पर शरीराकृति रूप स्त्रीत्व लिया गया है क्योंकि वेद के उदय में तो कोई जीव सिद्ध हो ही नहीं सकता है क्योंकि वेद का सर्वथा क्षय होने पर (अवेदी होने पर) ही जीव मोक्ष में जाता है। वेश तो अप्रामाणिक है अतः यहाँ शरीर की आकृति . अर्थात् स्त्री का शरीर रूप स्त्रीत्व की ही विवक्षा की गई है यथा - चन्दनबाला आदि।
दिगम्बर सम्प्रदाय में भी सिद्धों के पन्द्रह भेद किये गये हैं उनमें स्त्रीलिंग सिद्ध भी है। यथा -
नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक चक्रवर्ती द्वारा विरचित 'गोम्मटसार' (जीवकाण्ड) परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास द्वारा प्रकाशित छठी आवृत्ति पृष्ठ २८१ गाथा -
होति खवा इगिसमये, बोहिय बुद्धा य पुरिसवेदा य। उक्कस्सेणठुत्तरसयप्पमा, सग्गदो य चुदा॥ ६३०॥ पत्तेयबुद्ध तित्थयरस्थिणंउसयमणोहिणाणजुदा।। दसछक्कवीसदसवीसट्ठावीसं जहाकमसो॥६३१॥ जेट्ठावर बहुमज्झिम, ओगाहणगा दु चारि अट्टेव। जुगवं हवंति खवगा, उवसमगा अद्धमेदेसिं॥ ६३२॥
९. पुरुषलिंग सिद्ध - पुरुष की आकृति रहते हुए मोक्ष में जाने वाले पुरुष लिंग सिद्ध कहलाते हैं । जैसे गौतमस्वामी आदि।
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