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स्थान ४ उद्देशक ४
२. महा परिग्रह - वस्तुओं पर अत्यन्त मूर्छा, महा परिग्रह है ।
३. पंचेन्द्रिय वध - पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करना पंचेन्द्रिय वध है ।
४. कुणिमाहार कुणिम अर्थात् मांस का आहार करना ।
इन चार कारणों से जीव नरकायु का बन्ध करता है।
तिर्यंच आयु बन्ध के चार कारण -
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१. माया
विषकुम्भ- पयोमुख की तरह ऊपर से मीठा हो, दिल से अनिष्ट चाहने वाला हो ।
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अर्थात् कुटिल परिणामों वाला - जिसके मन में कुछ हो और शहर कुछ हो ।
२. निकृत्ति वाला - ढोंग करके दूसरों को ठगने की चेष्टा करने वाला ।
३. झूठ बोलने वाला।
४. झूठे तोल झूठे माप वाला। अर्थात् खरीदने के लिए बड़े और बेचने के लिए छोटे तोल और माप रखने वाला जीव तियंच गति योग्य कर्म बान्धता है।
मनुष्य आयु बन्ध के चार कारण -
१. भद्र प्रकृति वाला -
२. स्वभाव से विनीत ।
३. दया और अनुकम्पा के परिणामों वाला ।
४. मत्सर अर्थात् ईर्षा - डाह न करने वाला जीव मनुष्य आयु योग्य कर्म बाँधता है।
देव आयु बन्ध के चार कारण -
१. सराग संयम वाला ।
२. देश विरति श्रावक ।.
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२. अकाम निर्जरा अर्थात् अनिच्छा पूर्वक पराधीनता आदि कारणों से कर्मों की निर्जरा करने वाला । ४. बालभाव से अर्थात् विवेक के बिना अज्ञान पूर्वक काया क्लेश आदि तप करने वाला जीव देवायु के योग्य कर्म बाँधता है।
सनत्कुमार माहेन्द्र कल्प के विमान चार वर्ण वाले हैं। अन्य कल्पों के विमान के वर्ण इस प्रकार हैंसोहम्मे पंचवण्णा, एक्कगहाणी उ जा सहस्सारो ।
दो दो तुल्ला कप्पा, तेण परं पुंडरीयाओ ॥
- सौधर्म और ईशान देवलोक के विमान पांच वर्ण वाले हैं। तीसरे और चौथे देवलोक के विमान कृष्ण वर्ण के सिवाय चार वर्ण वाले, पांचवें और छठे देवलोक के विमान कृष्ण और नीलवर्ण के अलावा तीन वर्ण वाले, सातवें और आठवें देवलोक के विमान पीले और श्वेत (सफेद) वर्ण वाले और नववें देवलोक से सर्वार्थसिद्ध के विमान एक श्वेत वर्ण वाले हैं।
चौथा स्थान होने से यहां चार वर्ण वाले विमानों का कथन किया गया है।
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