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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अणुसिट्ठी - अनुशास्ति, उवालंभे - उपालंभ, पुच्छा - पृच्छा, णिस्सावयणे - निश्रावचन, अधम्मजुत्तेअधर्मयुक्त, पडिलोमे - प्रतिलोम, अत्तोवणीए - आत्मोपनीत, दुरुवणीए - दुरुपनीत, तव्वत्थुए - तद्वस्तु, तदण्णवत्थुए - तदन्यवस्तु, पडिणिभे - प्रतिनिभ, जावए - यापक, थावए - स्थापक, वैसएव्यंसक, लूसए - लूषक, पच्चक्खे - प्रत्यक्ष, अणुमाणे - अनुमान, ओवम्मे - औपम्य-उपमान, अस्थित्तं - अस्तित्व, णत्थित्तं - नास्तित्व।
भावार्थ - चार प्रकार का ज्ञात यानी दृष्टान्त कहा गया है यथा - आहरण यानी अप्रसिद्ध अर्थ की प्रतीति कराना, जैसे पाप दुःखरूप है ब्रह्मदत्त के समान । आहरण तद्देश यानी एकदेशीय दृष्टान्त देना, यथा चन्द्रवत् मुख । आहरणतद्दोष यानी दोषयुक्त दृष्टान्त देना । जैसे यह कहना कि 'ईश्वर ने इस जगत् को बनाया है घटपटादिवत् (घड़ा और कपड़े के समान)।' यह सदोष दृष्टान्त है क्योंकि जगत् शाश्वत है, इसको किसी ने नहीं बनाया है । उपन्यासोपनय यानी अपना इष्ट अर्थ सिद्ध करने के लिए वादी जो अनुमान दे उसका खण्डन करने के लिए प्रत्यनुमान देना । जैसे किसी ने कहा कि 'आत्मा कर्मों का कर्ता नहीं है,' अरूपी होने से, आकाश के समान । इसका उत्तर देना कि - यदि आत्मा आकाश के समान है तो वह सुख दुःख का भोगने वाला भी नहीं होगा आकाशवत् । आहरण चार प्रकार का कहा गया है यथा - अपाय यानी अनर्थ, उपाय, स्थापना कर्म और प्रत्युत्पन्नविनाशी । .
आहरणतद्देश चार प्रकार का कहा गया है यथा - अनुशास्ति यानी सद्गुणों की प्रशंसा करना । उपालम्भ यानी किसी अपराध के लिए उलाहना देना, जैसे कि सती चन्दनबाला ने मृगावती को उलाहना दिया था । पृच्छा यानी प्रश्न पूछना, जैसे कि कोणिक राजा आदि ने भगवान् से प्रश्न पूछे थे। निश्रा वचन यानी किसी एक को लक्षित करके सब शिष्यों को शिक्षा देना । आहरणतद्दोष यानी दोष युक्त दृष्टान्त चार प्रकार का कहा गया है यथा - अधर्मयुक्त यानी जिस दृष्टान्त को सुनने से अधर्मबुद्धि पैदा हो । प्रतिलोम यानी जैसे के प्रति वैसा करना, यथा - शठ के प्रति शठता करना । आत्मोपनीत यानी ऐसा वचन कहना जिससे स्वयं ही दण्ड का भागी होवे । दुरुपनीत यानी ऐसा वचन कहना जिसका अभिप्राय बुरा हो । उपन्यासोपनय चार प्रकार का कहा गया है यथा - तद्वस्तु यानी जैसी वस्तु है वैसा ही दृष्टान्त देना । तदन्यवस्तु यानी उससे दूसरा दृष्टान्त देना। प्रतिनिभ यानी उसके समान वस्तु का कथन करना, जैसे किसी तापस ने कहा कि 'यदि कोई मुझे न सुनी हुई बात सुनावे तो मैं लाख रूपये का सुवर्ण कटोरा इनाम दूं ।' तापस की बात सुन कर एक सिद्धपुत्र ने कहा कि 'मेरे पिताजी ने तुम्हारे पिता के पास एक लाख रूपये की धरोहर रखी थीं । यदि यह बात तुमने कभी पहले सुनी है तब तो मुझे मेरी धरोहर दे दो और यदि नहीं सुनी है तो लाख रूपये का सुवर्ण कटोरा दे दो । यह सुन कर तापस को वह सुवर्ण कटोरा देना पड़ा । हेतु यानी कारण का कथन करना, जैसे किसी ने साधु से पूछा कि यह तपस्या आदि कठिन क्रिया क्यों करते हो ? साधु ने जवाब दिया कि ' कठिन क्रिया किये बिना मोक्ष नहीं मिल सकता है । हेतु चार प्रकार का कहा गया है यथा - यापक हेतु यानी
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