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________________ ३९२ श्री स्थानांग सूत्र तरह चार भांगे समझने चाहिए । चार प्रकार के घोड़े कहे गये हैं । यथा - कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न है किन्तु कुलसम्पन्न नहीं है । कोई एक घोड़ा कुल सम्पन्न है किन्तु जाति सम्पन्न नहीं है । कोई एक घोड़ा जाति सम्पन भी है और कुल सम्पन्न भी है। कोई एक घोड़ा न तो जाति सम्पन्न है और न कुलसम्पन्न है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति सम्पन्न है किन्तु कुल सम्पन्न नहीं है । इस तरह चार भांगे कह देने चाहिए । चार प्रकार के घोड़े कहे गये हैं । यथा - कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न होता है किन्तु बल सम्पन्न नहीं होता है । कोई एक घोड़ा बल सम्पन्न होता है किन्तु जाति सम्पन्न नहीं होता है। कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न भी होता है और बल सम्पन्न भी होता है । कोई एक घोड़ा न तो जाति सम्पन्न होता है और न बल सम्पन्न होता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति सम्पन्न होता है किन्तु बल सम्पन्न नहीं होता है । इस प्रकार चार भांगे जानने चाहिए । चार प्रकार के घोड़े कहे गये हैं । यथा - कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न होता है किन्तु रूप सम्पन्न नहीं होता है । कोई एक घोड़ा रूप सम्पन्न होता है किन्तु जाति सम्पन्न नहीं होता है । कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। कोई एक घोड़ा न तो जाति सम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न होता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति सम्पन्न होता है किन्तु रूप सम्पन्न नहीं होता है । इस तरह चार भांगे कह देने चाहिए । चार प्रकार के घोड़े कहे गये हैं । यथा - कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न है किन्तु जयसम्पन्न नहीं है यानी संग्राम आदि में जय प्राप्त नहीं कर सकता है । कोई एक घोड़ा जय सम्पन्न होता है किन्तु जाति सम्पन्न नहीं होता है । कोई एक घोड़ा जाति सम्पन्न भी होता है और जय सम्पन्न भी होता है । कोई एक घोड़ा न तो जाति सम्पन्न होता है, और न जयसम्पन्न होता है । इसी :, तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । कोई एक पुरुष जाति सम्पन्न होता है । किन्तु जय सम्पन्न नहीं होता है । इस तरह चार भांगे कह देने चाहिए । पहले जैसे भांगे कहे हैं वैसे ही घोड़े और पुरुष पर कुल सम्पन्न और बल सम्पन्न के चार भांगे, कुल सम्पन्न और रूपसम्पन्न के चार भांगे, कुल सम्पन्न और जयसम्पन्न के चार भांगे, बल सम्पन्न और रूप सम्पन्न के चार भांगे तथा बल सम्पन्न और जय सम्पन्न के चार भांगे कह देने चाहिए । सब जगह प्रतिपक्ष यानी दार्टान्तिक रूप में पुरुष का कथन करना चाहिए। चार प्रकार के घोड़े कहे गये हैं । यथा - कोई एक घोड़ा रूप सम्पन्न होता है किन्तु जय सम्पन्न नहीं होता है । कोई एक घोड़ा जय सम्पन्न होता है किन्तु रूप सम्पन्न नहीं होता है । कोई एक घोड़ा रूप सम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है । कोई एक घोड़ा न तो रूप सम्पन्न होता है और न जयसम्पन्न होता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष रूप सम्पन्न होता है किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता है । इस तरह चार भांगे कह देने चाहिए। . चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष सिंह की तरह दीक्षा ग्रहण करता है और सिंह की तरह पालन करते हुए विचरता है, जैसे धन्ना मुनि । कोई एक पुरुष सिंह की तरह दीक्षा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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