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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - उपरोक्त सूत्र में लोकान्धकार और लोक-प्रकाश के चार-चार कारण बताये हैं। . अग्नि का विच्छेद होने से द्रव्य से अन्धकार होता है शेष तीन कारण भावान्धकार के हैं। इसी तरह सूर्य, चन्द्र दीपक आदि के प्रकाश को द्रव्य उद्योत कहा जाता है और ज्ञान, प्रमोद, इष्ट प्राप्ति आदि भाव प्रकाश (उद्योत) के अन्तर्गत आते हैं। यहां शास्त्रकार को भाव उद्योत ही अभीष्ट है। . . ____ चार कारणों से लोक में अंधकार हो जाता है - १. अरिहंतों के विरह होने से २. अरिहंत भाषित धर्म का व्यवच्छेद हो जाने से ३. पूर्वो का ज्ञान नष्ट हो जाने से और ४. बादर अग्नि का नाश हो जाने से।
चार कारणों से लोक में उद्योत (प्रकाश) होता है - १. अरिहंतों के जन्म होने से २. अरिहंतों की दीक्षा के अवसर पर ३. अरिहंतों के केवलज्ञान उत्पन्न होने पर और ४. अरिहंतों का निर्वाण होने पर । इसी प्रकार देव अन्धकार, देव प्रकाश आदि के भी चार चार कारण बतलाये हैं । देवों के समवाय (मिलाप) को देवसन्निपात एवं देवों की लहेरी (आनंदजन्य कल्लोल) को देवोत्कलिका कहते हैं ।
चतुर्विध दुःख शय्या ___चत्तारि दुहसेज्जाओ पण्णत्ताओ तंजहा - तत्थ खलु इमा पढमा दुहसेज्जा तंजहासे णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णिग्गंथे पावयणे संकिए, कंखिए, ... विइगिच्छिए, भेयसमावण्णे, कलुससमावण्णे, णिग्गंथ पावयणं णो सहइ, णो पत्तियइ, णो रोएइ, णिग्गंथं पावयणं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे मणं उच्चावयं णियच्छइ विणिघायमावग्जइ पढमा दुहसेज्जा ।अहावरा दोच्चा दुहसेजा से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ जाव पव्वइए सएणं लाभेणं णो तुस्सइ परस्स लाभमासाएइ, पीहेइ, पत्थेइ, अभिलसइ, परस्स लाभमासाएमाणे जाव अभिलसमाणे मणं उच्चावयं णियच्छइ विणिघायमावजइ दोच्चा दुहसेज्जा । अहावरा तच्चा दुहसेज्जा से णं मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए दिव्वे माणुस्सए कामभोए आसाएइ जाव अभिलसइ दिव्वमाणुस्सए कामभोए आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे मणं उच्चावयं णियच्छइ विणिघायमावजइ तच्चा दुहसेजा । अहावरा चउत्था दुहसेजां से णं मुंडे जाव पव्वइए तस्स णं एवं भवइ जया णं अहं अगारवासमावसामि तया णं अहं संवाहणपरिमण गायब्भंगगायुच्छोलणाई लभामि जप्पभिइं च णं अहं मुंडे जाव पव्वइए तप्पभिइंच णं अहं संवाहणं जाव गायुच्छोलणाई णो लभामि, से णं संबाहणं जाव गायुच्छोलणाइं आसाएइ जाव अभिलसइ, से णं संबाहणं जाव गायुच्छोलणाई आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे मणं उच्चावयं णियच्छइ विणिघायमावज्जइ चउत्था दुहसेजा॥१७४॥
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