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________________ स्थान ४ उद्देशक ३ ० ३७९ लोकान्धकार, लोक उद्योत के कारण चरहिं ठाणेहिं लोगंधयारे सिया तंजहा - अरिहंतेहिं वोच्छिजमाणेहिं, अरिहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिजमाणे, पुव्वगए वोच्छिजमाणे, जायतेए वोच्छिज्जमाणे। चउहिं ठाणेहिं लोउज्जए सिया तंजहा - अरिहंतेहिं जायमाणेहिं, अरिहंतेहिं पव्वयमाणेहिं अरिहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरिहंताणं परिणिव्वाण महिमासु । एवं देवंधयारे देव उज्जोए, देवसण्णिवाए देवउक्कलियाए, देवकहकहए। - चउहिं ठाणेहिं देविंदा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छंति एवं जहा तिठाणे जाव लोगंतिया देवा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छेजा तंजहा - अरिहंतेहिं जायमाणेहिं जाव अरिहंताणं परिणिव्वाण महिमासु॥१७३॥ कठिन शब्दार्थ - लोगंधयारे - लोक में अन्धकार, वोच्छिजमाणेहिं - व्यवच्छेद (विरह) पडने पर, लोउज्जोए - लोक में उद्योत, जायमाणेहिं - जन्म होने पर, पव्वयमाणेहिं - प्रव्रजित (दीक्षा) होने पर, णाणुप्पायमहिमासु - केवलज्ञान महोत्सव के समय, परिणिव्वाणमहिमासु - निर्वाण महोत्सव के समय, देक्सण्णिवाए - देव सन्निपात, देव उक्कलियाए - देव उत्कलिका। . भावार्थ - चार कारणों से लोक में कुछ समय के लिए अन्धकार हो जाता है । यथा - अरिहन्त भगवान् का व्यवच्छेद यानी विरह पड़ने पर, अरिहंत प्रज्ञप्त यानी अरिहंत भगवान् के फरमाये हुए धर्म का व्यवच्छेद होने पर, पूर्वपत यानी पूर्वधारी का व्यवच्छेद होने पर और अग्नि का विच्छेद होने पर, इन चार बातों के होने पर लोक में कुछ समय के लिये अन्धकार हो जाता है। चार कारणों से लोक में कुछ समय के लिये उदयोत यानी प्रकाश हो जाता है । यथा - तीर्थङ्कर भगवान् का . जन्म होने पर, तीर्थकर भगवान् के दीक्षा लेने पर, तीर्थङ्कर भगवान् को केवल उत्पन्न होने पर देवों." द्वारा किये गये केवलज्ञान महोत्सव के समय, तीर्थङ्कर भगवान् के मोक्ष जाने के समय देवों द्वारा किये जाने वाले निर्वाण महोत्सव के समय, इन चार बातों के होने पर लोक में कुछ समय के लिए प्रकाश हो जाता है । इस प्रकार देव अन्धकार और देव प्रकाश के चार चार कारण बतलाये हैं । इसी प्रकार देवसन्निपात यानी देवों का एक जगह इकट्ठा होना, देवउत्कलिका, देव कहकह यानी देवों की हर्ष ध्वनि के भी उपरोक्त चार कारण हैं । चार कारणों से देवेन्द्र मनुष्य लोक में आते हैं । इस तरह जैसा तीसरे स्थानक के प्रथम उद्देशक में कहा है वैसा ही सारा अधिकार यहाँ भी कह देना चाहिए यावत् लोकान्तिक देव चार कारणों से मनुष्यलोक में आते हैं । यथा - तीर्थङ्कर भगवान् के जन्म के समय यावत् तीर्थङ्कर भगवान् के मोक्ष जाने के समय देवों द्वारा किये जाने वाले निर्वाण महोत्सव के समय देव मनुष्यलोक में आते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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