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________________ ३६७ स्थान ४ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000जानने चाहिये । इसी प्रकार कुल की बल के साथ चतुभंगी (७) कुल और रूप की चतुभंगी () कुल और श्रुत की चतुभंगी (९) कुल और शील की चौभंगी (१०) कुल और चारित्र के साथ (११) चतुर्भगी कहनी चाहिये । चार प्रकार के पुरुष कहे हैं - १. एक पुरुष बल संपन्न है परन्तु रूप संपन्न नहीं है इस प्रकार बल और रूप की चतुभंगी (१२) जानना, बल की श्रुत के साथ (१३) चौभंगी, बल की शील के साथ (१४) बल और चारित्र की चौभंगी (१५) कहना । चार प्रकार के पुरुष कहे हैं - एक पुरुष रूप संपन्न है परन्तु श्रुत (ज्ञान) संपन्न नहीं, इस प्रकार रूप और श्रुत की चतुभंगी (१६) रूप की शील के साथ चतुभंगी (१७) रूप और चारित्र की चौभंगी (१८) । चार प्रकार के पुरुष कहे हैं - १. एक पुरुष श्रुत संपन है परन्तु शील संपन्न नहीं इस प्रकार श्रुत और शील की चौभंगी (१९) श्रुत • और चारित्र की चौभंगी (२०)। चार प्रकार के पुरुष कहे हैं - एक पुरुष शील संपन्न है परन्तु चारित्र संपन्न नहीं, इस प्रकार शील और चारित्र की चौभंगी समझना (२१)। इस प्रकार कुल इक्कीस चौभंगियाँ कह देनी चाहिये । ... । फलोपम आचार्य और साधक ___ चत्तारि फला पण्णत्ता तंजहा - आमलग महुरे, मुहियामहुरे, खीरमहुरे, खंडमहुरे। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता तंजहा - आमलगमहुर फलसमाणे जाव खंडमहुरफलसमाणे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आयवेयावच्चकरेंणाममेगे णो परवेयावच्चकरे, परवेयावच्चकरे णाममेगे णो आयवेयावच्चकरे, एगे आयवेयावच्चकरे वि परवेयावच्चकरे वि, एगे णो आयवेयावच्चकरे णो परवेयावच्चकरे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - करेइ णाममेगे वेयावच्चं णो पडिच्छई, पडिच्छइ णाममेगे वेयावच्चं णो करेइ, एगे वेयावच्चं करेइ वि पडिच्छा वि, एगे णो करेइ वेयावच्चं णो पडिच्छइ।। . चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अट्ठकरे माममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो अट्ठकरे, एगे अट्ठकरे वि माणकरे वि, एगे णो अट्ठकरे णो माणकरे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - गणटकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणट्टकरे, एगे गणट्टकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणटकरे णो माणकरे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - गणसंग्गहकरे णाममगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणसंग्गहकरे, एगे गणसंग्गहकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणसंग्गहकरे णो माणकरे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - गणसोभकरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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