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श्री स्थानांग सूत्र
और कुल का चारित्र के साथ चार चार आलापक - भांगे कह देने चाहिएं । चार प्रकार के पुरुष कहें?. . गये हैं यथा - कोई एक पुरुष बलसम्पन्न होता है किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष रूपसम्पन्न होता है किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो बलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न होता है । इसी प्रकार बल का श्रुत के साथ, बल का शील के साथ और बल का चारित्र के साथ चार चार आलापक - भांगे कह देने चाहिये । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा कोई एक पुरुष रूपसम्पन्न होता है किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता है। कोई एक पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और श्रुतसम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो रूपसम्पन्न होता है और न श्रुतसम्पन्न होता है। इसी प्रकार रूप का शील के साथ, रूप का चारित्र के साथ चार चार आलापक - भांगे कह देने चाहिये । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता है। कोई एक पुरुष शीलसम्पन्न होता है किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष श्रुतसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो श्रुतसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न होता है। इसी तरह श्रुत का चारित्र के साथ चार आलापक कह देने चाहिए। चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष शीलसम्पन्न होता है किन्तु चारित्रसम्पन्न नहीं होता है। कोई एक पुरुष चारित्रसम्पन्न होता है किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता है। कोई एक पुरुष शीलसम्पन्न भी होता है और चारित्रसम्पन्न भी होता है। कोई एक पुरुष न तो शीलसम्पन्न होता है और न चारित्रसम्पन्न होता है। इस प्रकार ये उपरोक्त इक्कीस चौभक्तियाँ कह देनी चाहिए ।
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विवेचन - चार प्रकार के फूल कहे गये हैं
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१. एक फूल सुन्दर परंतु सुगन्धहीन होता है जैसे आकुली, रोहिड़ आदि का फूल ।
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२. एक फूल सुगंध युक्त होता है पर सुन्दर नहीं होता जैसे बकुल और मोहनी का फूल । ३. एक फूल सुगन्ध और रूप दोनों से युक्त होता है । जैसे जातिपुष्प, गुलाब का फूल आदि । ४. एक फूल गन्ध और रूप दोनों से हीन होता है । जैसे बैर का फूल, धतूरे का फूल । (१) फूल की उपमा से चार प्रकार के पुरुष कहे हैं -
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१. एक पुरुष रूप सम्पन्न है परन्तु शील सम्पन्न नहीं । जैसे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ।
२. एक पुरुष शील सम्पन्न है परन्तु रूप सम्पन्न नहीं । जैसे हरिकेशी मुनि ।
३. एक पुरुष रूप और शील दोनों से ही सम्पन्न होता है । जैसे भरत चक्रवर्ती ।
४. एक पुरुष रूप और शील दोनों से ही हीन होता है। जैसे- काल सौकरिक कसाई ।
इसी प्रकार जाति का बल के साथ (२) जाति का रूप के साथ (३) जाति का श्रुत साथ (४) जाति का शील के साथ (५) जाति का चारित्र के साथ (६) चार चार आलापक (चतुर्भंगी)
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