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स्थान ४ उद्देशक ३
३६५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 एगे सीलसंपण्णे वि चरित्तसंपण्णे वि, एगे णो सीलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे । एए एक्कवीसं भंगा भाणियव्वा॥१६९॥ ___ कठिन शब्दार्थ - जुग्गारिया (जुग्गायरिय)- युग्यचर्या-हाथी घोड़े आदि की गति, पहजाई - मार्ग गामी, उप्पहजाई - उन्मार्गगांमी, पुष्फा - फूल, रूवसंपण्णे - रूपसंपन्न, गंधसंपण्णे - गंध संपन्न, बलसंपण्णे - बल संपन्न, सुयसंपण्णे - श्रुत संपन्न, सीलेण - शील के साथ । . .
भावार्थ - चार प्रकार की युग्य चर्या यानी हाथी घोड़े आदि की गति कही गई है यथा - कोई एक घोड़ा आदि मार्गगामी होता है किन्तु उन्मार्गगामी नहीं होता है । कोई एक उन्मार्गगामी होता है किन्तु मार्गगामी नहीं होता है । कोई एक मार्ग में भी चलता है और उन्मार्ग में भी चलता है । कोई एक न तो मार्ग में चलता है और न उन्मार्ग में चलता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष जिन-आज्ञा रूप मार्ग में चलता है किन्तु उन्मार्ग में नहीं चलता है । कोई एक उत्पथ यानी जिन-आज्ञा से विपरीत मार्ग में चलता है किन्तु जिनाज्ञा रूप मार्ग में नहीं चलता है । कोई एक पुरुष जिनाज्ञा रूप मार्ग में भी चलता है और जिनाज्ञा से विपरीत भी चलता है । कोई एक न तो मार्ग में चलता है और न उन्मार्ग में चलता है, जैसे सिद्ध भगवान् । चार प्रकार के फूल कहे गये हैं यथा - कोई एक फूल रूप सम्पन्न होता है किन्तु सुगन्ध युक्त नहीं होता है, जैसे केशू, आक आदि का फूल । कोई एक फूल गन्धसम्पन्न होता है किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता है, जैसे बकुल का फूल । कोई एक फूल रूपसम्पन्न भी होता है और गन्धसम्पन्न भी होता है, जैसे गुलाब, चमेली आदि के फूल । कोई एक फूल न तो रूपसम्पन्न होता है और न गन्धसम्पन्न होता है जैसे बदरी वृक्ष का फूल । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष रूपसम्पन्न है किन्तु शील आदि गुणों से युक्त नहीं है । कोई एक पुरुष शीलसम्पन्न है किन्तु रूपसम्पन्न नहीं है । कोई एक रूपसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो रूपसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न होता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष जातिसम्पन्न होता है किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष कुलसम्पन्न होता है किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और जातिसम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो कुलसम्पन्न होता है और न जातिसम्पन्न होता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष जातिसम्पन्न होता है किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक पुरुष बलसम्पन्न होता है किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता है । कोई एक। जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो जातिसम्पन्न होता है और न बल सम्पन्न होता है । इसी प्रकार जाति का रूप के साथ चार आलापक - भांगे कह देने चाहिएं । इसी प्रकार जाति का श्रुत के साथ, जाति का शील के साथ और जाति का चारित्र के साथ चार चार भांगे कह देने चाहिएं । इसी प्रकार कुल का रूप के साथ, कुल का श्रुत के साथ, कुल का शील के साथ
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