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________________ स्थान ४ उद्देशक २ ३४१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 चत्तारि सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा । चत्तारि कत्तियाओ जाव चत्तारि भरणीओ चत्तारि अग्गी जाव चत्तारि जमा, चत्तारि अंगारा जाव चत्तारि भावकेऊ । लवणस्स णं समुदस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता तंजहा - विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए। ते णं दारा चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्टिइया परिवसंति तंजहा - विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए । धायइसंडे दीवे चत्तारि जोयणसयसहस्साइं चक्कवाल विक्खंभेणं पण्णत्ते । जंबूद्दीवस्स णं दीवस्स बहिया चत्तारि भरहाइं चत्तारि एरवयाई, एवं जहा सदुद्देसए तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव चत्तारि मंदरा चत्तारि मंदर चूलियाओ॥१६२॥ कठिन शब्दार्थ - बाहिरिल्लाओ - बाहर की, वेइयाओ - वेदिका से, महालंजरसंठाण संठियामहा सुराही के आकार वाले, .महापायाला - महा पाताल कलश, वलयामुहे - बडवामुख, आवासपव्वया- निवास पर्वत, अणुवेलंधर णागराईणं - अनुवेलंधर नागराजाओं के, सदुद्देसए - : शब्दोद्देशक । __ भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के बाहर की वेदिका से चारों दिशाओं में लवण समुद्र में ९५ हजार योजन जाने पर वहाँ बहुत बड़े महा सुराही के आकार वाले चार महापाताल कलश कहे गये हैं । यथा बडवामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर । ये पाताल कलश एक लाख योजन गहरे हैं । इन का मूल भाग और ऊपर मुख भाग दस हजार योजन का चौड़ा है और मध्यभाग एक लाख योजन का चौड़ा है । इनके मूलभाग में सिर्फ वायु है । मध्य भाग में जल और वायु तथा ऊपर के भाग में सिर्फ पानी है । इन पाताल कलशों पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले चार देव निवास करते हैं । यथा - काल महाकाल वेलम्ब और प्रभञ्जन । इस जम्बूद्वीप की बाहरी वेदिका से चारों दिशाओं में लवण समुद्र में बयालीस हजार बयालीस हजार योजन जाने पर वहाँ चार वेलंधर नाग राजाओं के चार निवास पर्वत कहे गये हैं । यथा - गोस्तूभ, उदयभास, शंख और दकसीम । वहाँ महान् ऋद्धि वाले यावत् पल्योपम की स्थिति वाले चार देव रहते हैं । यथा - गोस्तूभ, शिवक, शंख और मनःशिल । इस जम्बूद्वीप की बाहरी वेदिका से चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में बयालीस हजार बयालीस हजार योजन जाने पर वहाँ चार अनुवेलंघर नागराजाओं के चार निवासपर्वत कहे गये हैं । यथा - कर्कोटक, विद्युत्प्रभ, कैलाश और अरुणप्रभ । उन पर्वतों पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति . वाले चार देव रहते हैं । यथा - कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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