SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 लवणसमुद्र में चार चन्द्रमा प्रकाशित हुए थे, प्रकाशित होते हैं और प्रकाशित होंगे । इसी प्रकार चार सूर्य तपे थे, तपते हैं और तपेंगे । इसी तरह चार कृतिका यावत् चार भरणी तक अट्ठाईस ही नक्षत्र प्रत्येक चार चार हैं । अग्नि यानी कृत्तिका नक्षत्र का अधिपति देव यावत् यम यानी भरणी नक्षत्र का स्वामी देव, ये अट्ठाईस नक्षत्रों के अट्ठाईस देव प्रत्येक चार चार हैं । अङ्गारक यावत् भावकेतु तक ८८ महाग्रह, ये प्रत्येक चार चार हैं । लवण समुद्र के चार द्वार कहे गये हैं । यथा - विजय वैजयंत जयन्त और अपराजित । वे द्वार चार योजन विष्कम्भ यानी चौड़े और उतने ही यानी चार योजन प्रवेश द्वार वाले कहे गये हैं । वहाँ महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले चार देव रहते हैं । यथा - विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित धातकीखण्ड द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ यानी गोलाकार चौड़ाई चार लाख योजन की कही गई है । इस जम्बूद्वीप के बाहर यानी धातकीखण्ड द्वीप में और अर्द्ध पुष्करवर द्वीप में चार भरत, चार ऐरवत यावत् चार मेरु पर्वत और चार मेरु पर्वत की चूलिकाएं हैं, इस प्रकार जैसे शब्दोद्देशक यानी दूसरे ठाणे के तीसरे उद्देशक में कहा है । वैसे ही सारा अधिकार यहाँ पर कह देना चाहिए । वहाँ दूसरा ठाणा होने से दो दो का कथन किया था किन्तु यह चौथा ठाणा है इसलिए चार चार का कथन किया गया है । विवेचन - जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिका से चारों दिशाओं में लवण समुद्र में ९५-९५ हजार योजन जाने पर कलश आकार के चार महापाताल कलश है। घड़ाकार होने से उन्हें कलश और गहराई से पाताल को स्पर्श करने वाले होने से उन्हें पाताल कलश कहा जाता है। वलयमुख, केतुक, यूपक और ईश्वर नाम के ये चारों महापाताल कलश वप्रमय है। जो मूलभाग में और ऊपर के भाग में १०-१० हजार योजन के तथा मध्य में लाख-लाख योजन हैं। इनकी दीवारें १००० योजन की मोटी है इन कलशों के ऊपर के तीसरे भाग में मात्र पानी है मध्य के तीसरे भाग में वायु और जल है तथा मूल के तीसरे भाग में वायु है। जिनमें काल आदि वायुकुमार जाति के देव है जिनकी स्थिति एक-एक पल्योपम की है। प्रत्येक पाताल कलश के आसपास छोटे-छोटे पाताल कलश भी है जिनकी कुल संख्या ७८८४ है जो मध्य भाग में १०००-१००० योजन के चौड़े हैं उनकी दीवारें १०-१० योजन की मोटी है। मूल एवं ऊपर भाग में १००-१०० योजन चौडे हैं। समस्त पाताल कलशों के तीन-तीन भाग हैं। ___ लवण समुद्र की शिखा को अथवा अन्दर में प्रवेश करती और बाहर निकलती अग्रशिखा को वेलंधर और अनुवेलंधर देव धारण करते हैं। लवण समुद्र की शिखा चक्रवाल (गोलाई) से १० हजार योजन चौड़ी १६ हजार योजन ऊंची और १ हजार योजन की लवण समुद्र की ऊपर की सपाटी से भूमि में गहरी है। शिखा ऊपर के भाग में किंचित् न्यून अर्द्ध योजन अहोरात्रि में दो बार क्रमशः विशेष विशेष बढ़ती और घटती रहती है। लवण समद्र की अंदर की वेला अर्थात् जम्बूद्वीप के सम्मुख जाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy