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________________ ३२८ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 करना नैरयिक संसार है अथवा जीव जिसमें संसरण करते हैं अर्थात् भटकते हैं वह गति चतुष्टय रूप संसार है। संसार आयुष्य होने पर होता है अतः इस सूत्र के बाद आयुष्य भी चार प्रकार का कहा है। जिसके कारण से जीव नरक आदि गतियों में रुका रहता है। नरक में उत्पत्ति होना नरक भव कहलाता है इसी प्रकार चारों भवों के विषय में समझ लेना चाहिये। चार प्रकार का आहार कहा गया है - १. अशन २. पान ३. खादिम और ४. स्वादिम । १. अशन - दाल रोटी भात आदि आहार अशन कहलाता है। २. पान - पानी आदि यानी पेय पदार्थ पान है। ३. खादिम - फल, मेवा आदि आहार खादिम कहलाता है। ४. स्वादिम - पान, सुपारी, इलायची आदि आहार स्वादिम है। इसके अतिरिक्त भी चार प्रकार का आहार कहा है जिसका स्वरूप भावार्थ में स्पष्ट कर दिया गया है। बंध, उपक्रम, अल्पबहुत्व, संक्रम निधत निकांचित के भेद ___ चउव्विहे बंधे पण्णत्ते तंजहा - पगइ बंधे, ठिइ बंधे, अणुभाव बंधे, पएस बंधे । चउबिहे उवक्कमे पण्णत्ते तंजहा-बंधणोवक्कमे, उदीरणोवक्कमे, उवसमणोवक्कमे, विप्परिणामणोवक्कमे । बंधणोवक्कमे चउबिहे पण्णत्ते तंजहा - पगइबंधणोवक्कमे, ठिइबंधणोवक्कमे, अणुभावबंधणोवक्कमे, पएसबंधणोवक्कमे । उदीरणोवक्कमे चउव्विहे पण्णत्ते तंजहा - पगइउदीरणोवक्कमे, ठिइउदीरणोवक्कमे, अणुभावउदीरणोवक्कमे, पएसउदीरणोवक्कमे । उवसमणोवक्कमे चउविहे पण्णत्ते तंजहा - पगइउवसमणोवक्कमे, ठिइउवसमणोवक्कमे, अणुभावउवसमणोवक्कमे, पएसउवसमणोवक्कमे। विप्परिणामणोवक्कमे चउव्विहे पण्णत्ते तंजहा - पगइविप्परिणामणोवक्कमे, ठिंइविप्परिणामणोवक्कमे, अणुभावविप्परिणामणोवक्कमे, पएसविप्परिणामणोवक्कमे । चउविहे अप्पाबहुए पण्णत्ते तंजहा - पगइअप्पाबहुए, ठिइअप्पाबहुए, अणुभावअप्पाबहुए, पएसअप्पाबहुए । चउव्विहे संकमे पण्णत्ते तंजहापगइसकमे, ठिइसकमे, अणुभावसंकमे, पएससंकमे। चउविहे णिधत्ते पण्णत्ते तंजहापगइणिवत्ते, ठिइणिधत्ते, अणुभावणिवत्ते, पएसणिवत्ते। चउव्विहे णिकाइए पण्णत्ते तंजहा - पगइणिकाइए, ठिइणिकाइए, अणुभावणिकाइए, पएसणिकाइए॥१५७॥ कठिन शब्दार्थ - पगइबंधे - प्रकृति बंध, ठिइबंधे - स्थिति बंध, अणुभावबंधे - अनुभाव बंध, पएसबंधे - प्रदेश बंध, बंधणोवक्कमे - बन्धनोपक्रम, उदीरणोपक्कमे - उदीरणोपक्रम, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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