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__ स्थान ४ उद्देशक २ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
संसार, आयु, भव, आहार के भेद चउव्विहे संसारे पण्णत्ते तंजहा - णेरइय संसारे, तिरिक्खजोणिय संसारे, मणुस्स संसारे, देव संसारे । चउव्विहे आउए पण्णत्ते तंजहा - णेरड्य आउए, तिरिक्खजोणिय आउए, मणुस्स आउए, देव आउए । चउव्विहे भवे पण्णत्ते तंजहा - णेरड्य भवे, तिरिक्खजोणिय भवे, मणुस्स भवे, देव भवे । चउव्विहे आहारे पण्णत्ते तंजहा - असणे, पाणे, खाइमे, साइमे । चउव्विहे आहारे पण्णत्ते तंजहा - उवक्खर संपण्णे, उवक्खड संपण्णे, सभाव संपण्णे, परिजुसिय संपण्णे॥१५६॥
कठिन शब्दार्थ - उवक्खर संपण्णे - उपस्कर संपन्न, उवक्खड संपण्णे - उपस्कृत संपन्न, सभाव संपण्णे - स्वभाव संपन्न, परिजुसिय संपण्णे - परिजुषित सम्पन्न। .
भावार्थ - चार प्रकार का संसार कहा गया है यथा - नैरयिक संसार, तिर्यञ्च योनिक संसार, मनुष्य संसार और देव संसार । चार प्रकार का आयुष्य कहा गया है यथा - नैरयिक आयुष्य, तिर्यज्य योनिक आयुष्य, मनुष्य आयुष्य और देव आयुष्य । चार प्रकार का भव कहा गया है यथा - नैरयिक भव तिर्यञ्च योनिक भव, मनुष्य भव और देव भव । चार प्रकार का आहार कहा गया है यथा - अशन,
ओदन आदि, पानी, खादिम फल आदि, स्वादिम चूर्ण आदि । चार प्रकार का आहार कहा गया है यथा-उपस्कर सम्पन्न यानी हींग आदि छोंकार - भंगार देकर तय्यार किया हुआ, उपस्कृतसम्पन्न यानी अग्नि द्वारा पका कर तय्यार किया हुआ ओदन आदि, स्वभाव सम्पन्न यानी स्वतः पक कर तय्यार बना हुआ दाख आदि और परिजुषित सम्पन्न यानी कुछ दिन पड़ा रख कर तय्यार किया हुआ जैसे आम का आचार आदि ।
- विवेचन - संसार का अर्थ है - "संसरन्ति जीवाः यस्मिन्नसौ संसारः" - जिसमें जीव संसरण अर्थात् परिभ्रमण करते हैं वही संसार है। संसार चार प्रकार का कहा है - १. नैरयिक संसार २. तिर्यंचयोनिक संसार ३. मनुष्य संसार और ४. देव संसार। नैरयिक के योग्य, आयु, नाम और गोत्र कर्म का उदय होने पर ही जीव नैरयिक कहलाता है। कहा है -
"णेरइए णं भंते ! णेरइएसु उववजइ अणेरइए णेरइएसु उववजइ ? गोयमा ! णेरइए णेरइएसु उववजइ णो अणेरइए णेरइएसु उववज्जइ ।" .
प्रश्न - हे भगवन्! क्या नैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न होता है या अनैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
. उत्तर - हे गौतम ! नैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न होता है परन्तु अनैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होता है। इस हेतु से नैरयिक का संसरण-उत्पत्ति स्थान में जाना अथवा अन्य-अन्य अवस्था को प्राप्त
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