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स्थान ३ उद्देशक १
१५९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 साहरेजा, कंताराओ वा णिवंतारं करेजा, दीहकालिएणं वा रोगायंकेणं अभिभूयं समाणं विमोएजा, तेणा वि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवइ, अहे णं से तं धम्मायरियं केवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भट्ठ समाणं भुजो वि केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता जाव ठावइत्ता भवइ तेणामेव तस्स धम्मायरियस्स सुप्पडियारं भवइ।६७।
कठिन शब्दार्थ - 'अम्मापिउणो - माता पिता का, भट्टिस्स - स्वामी का, धम्मायरियस्स - धर्माचार्य का, दुप्पडियारं - प्रत्युपकार करना कठिन है, संपाओ वि - सम्प्रातः अर्थात्-सूर्योदय के समय, सयपागसहस्सपोगेहिं - शतपाक सहस्रपाक, तिल्लेहिं - तेल से, अब्भंगित्ता - मर्दन करके, सुरभिणासुगंधित, गंधट्टएणं - गंध वाले द्रव्यों से, उव्वट्टित्ता - उबटन करके, मजावित्ता - स्नान करा कर, सव्वालंकार विभूसियं - सब प्रकार के बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से अलंकृत, थालीपागसुद्धं - मिट्टी के बर्तन में शुद्धता पूर्वक पकाया हुआ, अठारसवंजणाउलं - अठारह प्रकार के शाक आदि से युक्त, भोयावित्ता - जीमा कर, पिट्ठिवडिंसियाए - पृष्ठ्यवतंसिका से अर्थात्-अपनी पीठ पर, परिवहेजा - उठाये फिरे, आघवइत्ता - कह कर, पण्णवित्ता - बोध दे कर, परूवित्ता - भेद प्रभेद समझा कर, ठावित्ता - धर्म में स्थिर कर, सुप्पडियारं - प्रत्युपकार कर सकता है, समुक्कसेजा - उन्नत और धनवान बना दे, विउलभोगसमिइ समण्णामए - विपुल भोग सामग्री से युक्त हो कर, सव्वस्समवि - सर्वस्व, दलयमाणे - दे देवे, सुवयणं- सुवचन , सोच्चा - सुन कर, णिसम्म - हृदय में धारण कर, दुभिक्खाओ - 'दुर्भिक्ष वाले स्थान से, सुभिक्खं - सुभिक्ष वाले स्थान पर, साहरिजा - ला कर रख दे, कंताराओ - कान्तार से अर्थात् जंगल से, णिक्कंतारं - निष्कान्तार स्थान पर, रोगायंकेणं - रोग और आतंक से, विमोएज्जा-निवारण कर दे।
भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी फरमाते हैं कि हे आयुष्मन् श्रमणो ! माता-पिता का, पालन पोषण करने वाले स्वामी का और धर्माचार्य का इन तीन पुरुषों का प्रत्युपकार करना यानी इनके उपकार का बदला चुकांना बड़ा कठिन है। जैसे कोई कुलीन पुरुष सदा सूर्योदय के समय प्रातःकाल में अपने माता-पिता को शतपाक, सहस्रपाक तेल से मर्दन करके, सुगन्धित गन्ध वाले द्रव्यों से उबटन करके सुगन्धित जल गर्मजल और ठण्डा जल इन तीन प्रकार के जलों से स्नान करा कर सब प्रकार के बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से उनके शरीर को अलंकृत करके, मिट्टी के बर्तन में शुद्धता पूर्वक पकाया हुआ अठारह प्रकार के शाक आदि से युक्त मनोज्ञ भोजन जीमा कर यावज्जीवन यानी जीवन पर्यन्त पृष्ठ्यवतंसिका से (पीठ पर बैठा कर या कावड़ में बिठाकर कन्धे से) अपनी पीठ पर उठाये फिरे, तो भी यानी इतना करने पर भी उन माता-पिताओं का प्रत्युपकार करना कठिन है अर्थात् वह माता-पिता के ऋण से उऋण (मुक्त) नहीं हो सकता है, परन्तु यदि वह पुत्र उन माता-पिता को केवलिभाषित धर्म
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