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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - क्षेत्र लोक में जो अंधकार होता है उसे 'लोकांधकार' कहते हैं। लोकान्धकार द्रव्य से लोकानुभाव से (जगत् स्वभाव से) अथवा भाव से प्रकाशक स्वभाव वाले ज्ञान के अभाव से होता है। ___उत्कृष्ट भक्ति हेतु तत्पर सुर और असुरों के विशेष समूह से रचित, अशोकवृक्ष आदि अष्ट प्रकार के विशिष्ट महा प्रातिहार्य रूप पूजा और सर्व रागादि शत्रु के क्षय से मुक्ति महल के शिखर ऊपर चढ़ने में जो योग्य हैं वे अर्हन्त कहलाते हैं। कहा है -
अरिहंति वंदणं णमंसणाणि, अरिहंति पूय सक्कारं। सिद्धिगमणं च अरिहा, अरिहंता तेण वुच्चंति॥
अर्ह धातु पूजा के अर्थ में है और पचादि गण में 'अच्' प्रत्यय करने से बहुवचन में अर्हा - वंदन और नमस्कार करने के तथा पूजा और सत्कार करने के योग्य है और सिद्धि गमन में योग्य हैं इस कारण से अहँत कहे जाते हैं। अर्हन्तों के निर्वाण प्राप्त होने, अर्हन्तों द्वारा प्ररूपित धर्म का विच्छेद होने पर यानी धर्म तीर्थ का विच्छेद होते समय तथा दृष्टिवाद के विच्छेद होने पर लोक में अन्धकार होता है। इससे विपरीत तीन कारण लोक में उद्योत के बताये हैं।
तिण्हं दुप्पडियारं समणाउसो ! तंजहा - अम्मापिउणो, भट्टिस्स, धम्मायरियस्स। संपाओ वि य णं केइ पुरिसे अम्मापियरं सयपागसहस्सपागेहिं तिल्लेहिं अब्भंगित्ता सुरभिणा गंधट्टएणं उव्वट्टित्ता तिहिं उदगेहिं मजावित्ता सव्यालंकारविभूसियं करेत्ता मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भोयावित्ता जावज्जीवं पिट्ठिवडिंसियाए परिवहेजा, तेणा वि तस्स अम्मापिउस्स दुष्पडियारं भवइ, अहे णं से तं अम्मापियरं केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता पण्णवित्ता परूवित्ता ठावित्ता भवइ, तेणामेव तस्स अम्मापिउस्स सुप्पडियारं भवइ। समणाउओ ! केइ महच्चे दरिहं समुक्कसेज्जा, तए णं से दरिद्दे समुक्किढे समाणे पच्छा पुरं च णं विउलभोगसमिइसमण्णागए यावि विहरेजा, तएणं से महच्चे अण्णया कयाइ दरिद्दीहूए समाणे तस्स दरिहस्स अंतिए हव्यमागच्छेजा, तएणं से दरिद्दे तस्स भट्टिस्स सव्यस्समवि दलयमाणे तेणा वि तस्स दुप्पडियारं भवइ, अहे णं से तं भट्टि केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता पण्णवइत्ता परूवइत्ता ठावइत्ता भवइ, तेणामेव तस्स भट्टिस्स सुप्पडियारं भवइ । केइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोचा णिसम्म कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णे, तए णं से देवे तं धम्मायरियं दुब्भिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं
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