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स्थान ३ उद्देशक १
विनाश नहीं करता है। जो झूठ नहीं बोलता है, जो तथारूप यानी साधु के गुणों से युक्त श्रमण माहन यानी साधु महात्मा को वन्दना करके, नमस्कार करके, सत्कार करके, सन्मान करके, कल्याणकारी मङ्गलकारी धर्म देव रूप और ज्ञानवान् ऐसे शब्द कह कर विनय पूर्वक सेवा करके, मनोज्ञ प्रीतिकारक अशन पानी खादिम स्वादिम से प्रतिलाभित करता है। इन तीन कारणों से जीव शुभ दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधते हैं।
विवेचन - तीन कारणों से जीव अल्पायु फल वाले कर्म बांधता है १. प्राणियों की हिंसा करने वाला २. झूठ बोलने वाला ३. तथारूप (साधु के अनुरूप क्रिया और वेश आदि से युक्त दान के पात्र) श्रमण, माहण ( श्रावक) को अप्रासुक, अकल्पनीय, अशन, पान, खादिम स्वादिम देने वाला जीव अल्पायु फल वाला कर्म बांधता है। इससे विपरीत तीन कारणों से जीव दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधता है - १. प्राणियों की हिंसा नहीं करने वाला २. झूठ नहीं बोलने वाला ३. तथारूप के 'श्रमण माहण को प्रासुक एषणीय अशन, पान, खादिम स्वादिम बहराने वाला जीव दीर्घ आयु फल वाला कर्म बांधता है ।
तीन स्थानों जीव अशुभ दीर्घायु बांधता है १. प्राणियों की हिंसा करने वाला २. झूठ बोलने वाला ३. तथारूप श्रमण माहण की जाति को प्रकट करके अवहेलना करने वाला, मन में निन्दा करने वाला, लोगों के सामने निन्दा करने वाला, अपमान करने वाला तथा अप्रीति पूर्वक अमनोज्ञ अशनादि बहराने वाला जीव अशुभ दीर्घायु फल वाला कर्म बांधता है।
तीन स्थानों से जीव शुभ दीर्घायु बांधता है १. प्राणियों की हिंसा न करने वाला २. झूठ न बोलने वाला ३. तथारूप श्रमण माहण को वन्दना नमस्कार यावत् उनकी उपासना करके उन्हें किसी प्रकार के मनोज्ञ एवं प्रीतिकारक अशनादिक का प्रतिलाभ देने वाला अर्थात् बहराने वाला जीव शुभ दीर्घायु बांधता है।
तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ तंजहा - मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती । संजयमणुस्साणं तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ तंजहा - मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती । तओ अगुत्तीओ पण्णचाओ तंजहा मणअगुत्ती वयअगुत्ती कायअगुत्ती । एवं णेरइयाणं जाव थणियकुमाराणं। पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं असंजयमणुस्साणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं । तओ दंडा पण्णत्ता तंजहा-मणदंडे वयदंडे कायदंडे । रइयाणं तओ दंडा पण्णत्ता तंजहा - मणदंडे वयदंडे कायदंडे, विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं ॥ ६० ॥
कठिन शब्दार्थ- गुत्तीओ गुप्तियाँ, अगुत्तीओ- अगुप्तियाँ, संजयमणुस्साणं - संयत मनुष्य के, असंजयमणुस्साणं - असंयत मनुष्य के, दण्डा दण्ड ।
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