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________________ श्री स्थानांग सूत्र ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति। तिहिं ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा - पाणे अइवाइत्ता भवइ, मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता णिदित्ता खिंसित्ता गरहित्ता अवमाणित्ता अण्णयरेणं अमणुण्णेणं अपीइकारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभित्ता भवइ, इच्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति। तिहिं ठाणेहिं जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मपगरेति तंजहा - णो पाणे अइवइत्ता भवइ, णो मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता णमंसित्ता सक्कारिता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पण्जुवासित्ता मणुण्णेणं पीइकारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभित्ता भवइ, इच्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेति॥५९॥ कठिन शब्दार्थ- अप्पाउयत्ताए - अल्प आयुष्य रूप से, पगरेंति - बांधते हैं, अइवाइत्ता भवइ - विनाश करता है, मुसं - मृषा-झूठ, तहारूवं - तथारूप के, अफासुएणं - अप्रासुक, अणेसणिजेणं - अनेषणीय, असणं - अशन, पाण - पान, खाइम - खादिम, साइमेणं - स्वादिम, पडिलाभित्ता - प्रतिलाभित करके, इच्चेएहिं - इन, दीहाउयत्ताए-दीर्घ आयुष्य रूप, फासुयप्रासुक, एसणिज्जेणं - एषणीय, हीलित्ता - हीलना करके, शिंदित्ता - निन्दा करके, खिंसित्ता - खिंसना करके, गरहित्ता - गर्दा करके, अवमाणित्ता - अपमान करके, अपीइकारएणं - अप्रीतिकारक। भावार्थ - तीन स्थानों से यानी कारणों सेजीव अल्प आयुष्य रूप से कर्म बांधते हैं। यथा - जो प्राणियों का विनाश करता है। जो झूठ बोलता है और जो तथारूप अर्थात् साधु के गुणों से युक्त श्रमण माहण को यानी साधु महात्मा को अप्रासुक और अनेषणीय अशन पानी खादिम स्वादिम से प्रतिलाभित करता है अर्थात् देता है। इन तीन कारणों से यानी उपरोक्त तीन कारणों को करने वाले जीव अल्प आयुष्य बांधते हैं। तीन कारणों से जीव दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधते हैं। यथा - जो प्राणियों का विनाश नहीं करता है, जो झूठ नहीं बोलता है और जो तथा रूप यानी साधु के गुणों से युक्त श्रमण माहण यानी साधु महात्मा को प्रासुक और एषणीय अशन पानी खादिम स्वादिम बहराता है यानी देता है। इन तीन कारणों से जीव दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधते हैं। तीन कारणों से जीव अशुभ दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधते हैं। यथा - जो प्राणियों का विनाश करता है, जो झूठ बोलता है और जो तथारूप के श्रमण माहन की हीलना करके, निन्दा करके, खिंसना करके, यानी जनता के सामने उन्हें चिढा कर, गर्दा करके, अपमान करके, अमनोज्ञ और अप्रीति कारक कुछ अशन पानी खादिम स्वादिम से प्रतिलाभित करता है। इन तीन कारणों से जीव अशुभ दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधते हैं। तीन कारणों से जीव शुभ दीर्घ आयुष्य रूप कर्म बांधते हैं। यथा - जो प्राणियों का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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