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स्थान २ उद्देशक ४
की पंक्ति, अगड यानी कुआं, तालाब, द्रह, नदी, रत्नप्रभा आदि पृथ्वी, घनोंदधि, वातस्कन्ध यानी घनवात और तनुवात, वातस्कन्ध के नीचे रहने वाला आकाश, वलय यानी घनोदधि, घनवात आदि का बन्ध, विग्रह यानी त्रस नाड़ी में रहे हुए वक्र गति के स्थान, द्वीप, समुद्र, वेल यानी समुद्र के जल की वृद्धि रूप वेल, वेदिका, द्वार, तोरण, नैरयिक, नैरयिकों के रहने का स्थान, यावत् वैमानिक देव वैमानिक देवों के रहने का स्थान, कल्प यानी बारह देवलोक, देवलोकों में रहने का स्थान, वर्ष यानी भरत आदि क्षेत्र, क्षेत्रों की मर्यादा करने वाले वर्षधर पर्वत, कूटं यानी पर्वत का शिखर, कूटागार यानी पर्वत शिखर की गुफा, विजय राजधानी - जहां राजा रहता है ये सब अपेक्षा विशेष से जीव और अजीव कहे जाते हैं। शरीर और वृक्षादि की छाया, सूर्य का आतप, चन्द्रमा की ज्योत्स्ना, अन्धकार, अवमान यानी क्षेत्र आदि प्रमाण, उन्मान यानी सेर मन ( वर्तमान में किलो आदि) आदि तोल, अतियानगृह यानी नगर आदि में प्रवेश करते ही जो घर हों वे, उदयान में होने वाले घर यानी लता मण्डप आदि, अवलिम्ब यानी देशविशेष और सन्निप्रपात यानी जल गिरने के स्थान आदि, ये सब जीव और अजीव कहे जाते हैं यानी ये सब जीव और अजीवों से व्याप्त हैं इसलिये अपेक्षा विशेष से जीव और अजीव कहे जाते हैं।
'अवलिंब' के स्थान पर कहीं 'ओलिंद' पाठ भी है। जिसका अर्थ है बाहर के दरवाजे के पास का स्थान । 'सणिप्पवाय' की संस्कृत छाया 'शनैः प्रपात और सनिष्प्रपात' हो सकती है। यहाँ पर सनिष्प्रपात का अर्थ होता है। प्रकोष्ट अपवरक अर्थात् भीतरी दरवाजे के पास का स्थान। ये दोनों अर्थ प्रकरण संगत लगते हैं।
विवेचन- ग्राम, नगर निगम आदि शब्दों के अर्थ भावार्थ में स्पष्ट कर दिये हैं। नैरयिक से लेकर वैमानिक देव तक चौबीस ही दण्डकों के जीव कर्म पुद्गलों की अपेक्षा अजीव कहे गये हैं।
दो रासी पण्णत्ता तंजहा जीवरासी चेव अजीवरासी चेव । दुविहे बंधे पण्णत्ते तंजा पेज्जबंधे चेव दोसबंधे चेव । जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्मं बंधंति तंजहा रागेण चैव दोसेण चेव । जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्मं उदीरेंति तंजहा अब्भोगमियाए चेव वेयणाए उवक्कमियाए चेव वेयणाए । एवं वेदेंति एवं णिज्जरेंति अब्भोगमियाए चेव वेयणाए उवक्कमियाए चेव वेयणाए ॥ ४५ ॥
कठिन शब्दार्थ - रासी उदीरणा करते हैं, अब्भोगमियाए निर्जरा करते हैं।
राशि, पेज्जबंधे - रागबन्ध, दोसबंधे - द्वेष बन्ध, उदीरेंति - आभ्युपगमिकी, उवक्कमियाए - औपक्रमिकी, णिज्जरेंति
भावार्थ
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दो राशि कही गई है यथा - जीव राशि और अजीव राशि। दो प्रकार का
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