SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० 100 नगर (नकर) णिगमा निगम, रायहाणी - कर्बट, मडंबा मडम्ब, दोणमुहा - द्रोणमुख, - कठिन शब्दार्थ - गामा- ग्राम, णगरा राजधानी, खेडा- खेट (खेड़ा), कब्बडा पट्टणा - पत्तन, आगरा आकर, आसमा - आश्रम, संबाहा - संबाह, सण्णिवेसा - सन्निवेश, घोसा घोष, आरामा आराम, उज्जाणा उद्यान, वणा वन, वणखंडा - वनखण्ड, वावी. बावडी, पुक्खरणी - पुष्करणी, सरा सरोवर, सरपंती सरोवरों की पंक्ति, अगडा - अगड (कुआ), तलागा - तालाब, दहा द्रह, णई नदी, उदही- उदधि, वायखंधा वात स्कन्ध, उवासंतरा उपा सान्तर - वातस्कंध के नीचे रहने वाला आकाश, वलया- वलय, विग्गहा - विग्रह, दीवा - द्वीप, समुद्दा समुद्र, वेला-वेल, दारा द्वार, तोरणा - तोरण, छाया - छाया, - आयवा आतप, दोसिणा - ज्योत्सना, अंधगारा अंधकार, ओमाणा अवमान् उम्माणा उन्मान, अइयाणगिहा - अतियान गृह, उज्जाणगिहा - उद्यान में होने वाले घर, अवलिंबा अवलिम्ब, सण्णिप्पवाया सन्निप्रपात । - - Jain Education International श्री स्थानांग सूत्र - - - - - - भावार्थ - ग्राम नगर आदि में रहने वालों जीवों की अपेक्षा उनको जीव कहा गया है और ये ग्राम, नगर आदि चूना, ईंट, पत्थर आदि अचेतन पदार्थों से बनाये जाते हैं। इसलिए इनको अजीव कहा गया है। " ग्राम- जहाँ प्रवेश करने पर कर लगता हो ( यह प्राचीन व्याख्या मात्र है) जिसके चारों ओर कांटों की बाड़ हो अथवा जहाँ मिट्टी का परकोटा हो और जहाँ किसान लोग रहते हों उसे ग्राम कहते हैं। जहाँ राज्य का कर न लगता हो उसे नगर या नकर कहते हैं (यह शब्द की व्युत्पत्ति मात्र है अन्यथा आजकल सब नगरों और शहरों में राज्य का कर लगता है।) जहाँ महाजनों की बस्ती अधिक हो उसे निगम कहते हैं। जहाँ राजा का निवास होता है उसे राजधानी कहते हैं। जिसके चारों ओर धूल का परकोटा हो उसे खेट या खेडा कहते हैं । कुनगर को कर्बट कहते हैं। जिसके चारों तरफ दो दो कोस तक कोई गांव न हो उसे मडम्ब कहते हैं। जिसमें जाने के लिये जल और स्थल दोनों प्रकार के रास्ते हों उसे द्रोणमुख कहते हैं। जिसमें जाने के लिये जल या स्थल दोनों में से एक रास्ता हो उसे पत्तन कहते हैं। लोह आदि की खान को आकर कहते हैं । परिव्राजकों के रहने के स्थान को एवं तीर्थस्थान को आश्रम कहते हैं । समभूमि वाले स्थान को संबाह कहते हैं । सन्निवेश यानी सार्थवाह के ठहरने का पड़ाव, घोष यानी नदी के किनारे ग्वालों की बस्ती, आराम यानी स्त्री पुरुषों के क्रीड़ा करने का बगीचा (व्यक्तिगत बगीचा), उद्यान यानी बहुत प्रकार के वृक्षों से युक्त बगीचा पब्लिक - सार्वजनिक बगीचा, जो सर्वसाधारण जनता के उपयोग में आता हो । जहाँ एक जाति के वृक्ष हो वह वन कहलाता है। जहाँ अनेक जाति के वृक्ष हों वह वनखण्ड कहलाता है । वापी यानी चार कोनों वाली बावड़ी, पुष्करणी यानी कमलादि से युक्त बावडी, सरोवर, सरोवरों For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy