________________
स्थान २ उद्देशक ३
Jain Education International
000
नागकुमारों के इन्द्र कहे गये हैं । सुवर्णकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं यथा - वेणुदेव और वेणुदाली । विदयुत्कुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं यथा हरि और हरिसह । अग्निकुमारों के दो इन्द्र-अग्निशिखा और अग्निमाणवक। द्वीपकुमारों के दो इन्द्र-पूर्ण और विशिष्ठ । उदधिकुमारों के दो इन्द्र-जलकान्त और जलप्रभ । दिशाकुमारों के दो इन्द्र-अमितगति और अमित वाहन । वायुकुमारों के दो इन्द्र-वेलम्ब और प्रभञ्जन । स्तनितकुमारों के दो इन्द्र घोष और महाघोष । ये १० भवनपतियों के २० इन्द्र हैं । पिशाचों के दो इन्द्र-काल और महाकाल । भूतों के दो इन्द्र-सुरूप और प्रतिरूप । यक्षों के दो इन्द्रपूर्णभद्र और माणिभद्र । राक्षसों के दो इन्द्र - भीम और महाभीम । किन्नरों के दो इन्द्र- किन्नर और किंपुरुष । किंपुरुषों के दो इन्द्र-सत्पुरुष और महापुरुष । महोरगों के दो इन्द्र - अतिकाय और महाकाय । गन्धर्वों के दो इन्द्र-गीतरति और गीतयश । आणपन्नी के दो इन्द्र- सन्निहित और श्रामण्य । पाणपन्नी के दो इन्द्र-धात और विधात । ऋषिवादी के दो इन्द्र ऋषि और ऋषिपालक । भूतवादी के दो इन्द्रईश्वर और महेश्वर। कृंधित (स्कंधक) के दो इन्द्र - सुवत्स और विशाल । महाकुंधित (महास्कंधक)
।
दो इन्द्र- हास्य और हास्यरति । कुहंड ( कूष्माण्ड) के दो इन्द्र - श्वेत और महाश्वेत । पतङ्ग के दो इन्द्र-पतङ्ग और पतङ्गपति । ये सोलह व्यन्तर देवों के ३२ इन्द्र हैं। ज्योतिषी देवों के दो इन्द्र कहे गये हैं यथा - चन्द्र और सूर्य । सौधर्म और ईशान इन दो देवलोकों में दो इन्द्र कहे गये हैं यथा - शक्र और ईशान। इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों में दो इन्द्र कहे गये हैं. यथा सनत्कुमार और माहेन्द्र। ब्रह्मलोक और लान्तक इन दो देवलोकों में दो इन्द्र कहे गये हैं यथा - ब्रह्म और लान्तक । महाशुक्र और सहस्रार इन दो देवलोकों में दो इन्द्र कहे गये हैं यथा - महाशुक्र और सहस्रार । आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार देवलोकों में दो इन्द्र कहे गये हैं यथा प्राणत और अच्युत अर्थात् आनत और प्राणत इन नवें और दसवें दो देवलोकों में एक प्राणत इन्द्र हैं तथा आरण और अच्युत इन ग्यारहवें और बारहवें दो देवलोकों में एक अच्युत इन्द्र हैं । बारह वैमानिक देवलोकों में दस इन्द्र हैं। भवनपति देवों के २०, वाणव्यंतर देवों के ३२, ज्योतिषी देवों के २, और वैमानिक देवों के १० ये सब मिलाकर ६४ इन्द्र हैं । महाशुक्र और सहस्रार इन दो देवलोकों में विमान पीले और सफेद दो रंग के कहे गये हैं। ग्रैवेयक देवों की ऊँचाई दो रत्नि यानी दो हाथ की कही गई है।
विवेचन - असुरकुमार आदि दस भवनपति देव, मेरु पर्वत की अपेक्षा उत्तर और दक्षिण इन दो दिशाओं के आश्रित होने से प्रत्येक दिशा का एक एक इन्द्र होने के कारण भवनपति के २० इन्द्र कहे हैं। इसी प्रकार आठ जाति के व्यंतर देवों के १६ इन्द्र हैं तथा आणपत्नी आदि ८ व्यंतर विशेष निकाय के देवों के सोलह इन्द्र हैं। ज्योतिषी देवों में असंख्यात चन्द्र और सूर्य होने पर भी जाति मात्र का आश्रय करने से चन्द्र और सूर्य, ये दो इन्द्र कहे गये हैं । सौधर्म आदि बारह देवलोकों के १० इन्द्र है। इस प्रकार सब मिला कर ६४ इन्द्र हैं ।
-
For Personal & Private Use Only
११५
-
www.jalnelibrary.org