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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 थे यानी उनकी आयु दो पल्योपम की होती थी। इसी प्रकार इस वर्तमान अवसर्पिणी के दूसरे आरे में मनुष्यों की ऊंचाई दो गाउ और आयु दो पल्योपम थी। इसी प्रकार आगामी उत्सर्पिणी काल के सुषमा नामक पांचवें आरे में मनुष्यों की ऊंचाई दो गाउ और आयुष्य दो पल्योपम की होगी। इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक युग में एक ही समय में दो अरिहन्तों के वंश उत्पन्न हुए थे तथा उत्पन होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार दो चक्रवर्तियों के वंश और दो दसार यानी वासुदेव राजाओं के वंश उत्पन्न हुए थे, होते हैं और होंगे। इस जम्बूद्वीप में भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक समय में दो अरिहन्त (तीर्थंकर) उत्पन्न हुए थे तथा उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार दो चक्रवर्तियों के वंश, दो बलदेवों के वंश, दो वासुदेव एक समय में उत्पन्न हुए थें उत्पन्न . होते हैं और उत्पन्न होंगे। इस जम्बूद्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु इन दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषमसुषम नामक पहले आरे जैसी उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं। इस जम्बूद्वीप में हरिवर्ष और रम्यकवर्ष इन दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषम नामक दूसरे आरे की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए यानी उसे भोगते हुए विचरते हैं। इस जम्बूद्वीप में हैमवत और ऐरण्यवत इन दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषमदुष्षम नामक तीसरे आरे सम्बन्धी उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं। इस जम्बूद्वीप में पूर्व विदेह और अपरविदेह यानी पश्चिमविदेह इन दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा दुष्षमसुषम नामक चौथे आरे सम्बन्धी उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए यानी उसे भोगते हुए विचरते हैं। इस जम्बूद्वीप में भरत और ऐरवत इन दो क्षेत्रों में मनुष्य छहों आरों के भिन्न भिन्न भावों का अनुभव करते हुए विचरते हैं।
विवेचन - पांच वर्ष के काल को एक युग कहते हैं। एक युग में अरिहंतों के दो वंश-प्रवाह कहे हैं। एक भरत क्षेत्र में उत्पन्न और दूसरा ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न हुआ है। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में छह-छह आरे होते हैं। यह काल भरत और ऐरवत क्षेत्र में ही होता है। प्रथम सुषमंसुषम आरे में जितनी आयु और अवगाहना भरत ऐरवत क्षेत्र में होती है उतनी ही आयु और अवगाहना देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों की होती है। सुषम नामक दूसरे आरे में जितनी आयु और अवगाहना होती है उतनी ही हरिवर्ष रम्यक् वर्ष क्षेत्र के मनुष्यों की सदैव रहती है। सुषम दुष्षम नामक तीसरे आरे में जितनी आयु अवगाहना होती है उतनी ही आयु और अवगाहना हैमवत् हैरण्यत में रहती है।
देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र की मनुष्यों की आयु तीन पल्योपम (जघन्य पल्योपम के असंख्य भाव न्यून भी आयुष्य होता है) और अवगाहना तीन कोस की होती है। इन मनुष्यों के ५६ पसलियाँ होती है और सुषम सुषम नामक पहले आरे की तरह अत्यंत सुख का अनुभव करते हैं। ४९ दिन
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