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________________ - स्थान २ उद्देशक ३ १०१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 समुद्र में जा गिरती है। प्रवाह में यानी निकलते समय रोहित नदी १२॥ योजन चौडी और १ गाऊ ऊंडी होती है उसके बाद क्रमशः वृद्धि पाती हुई मुख (समुद्र प्रवेश) में १२५ योजन चौडी २॥ योजन ऊंडी और दोनों तरफ दो वेदिका और दो वनखण्ड से युक्त होती है। इसी प्रकार सभी महानदियाँ, पर्वतों, कूटों और वेदिका आदि से युक्त है। हरिकान्ता नदी तो महापद्म द्रह से ही उत्तर दिशा के तोरण द्वार से निकल कर कुछ अधिक १६०५ योजन तक उत्तर दिशा में पर्वत ऊपर हो कर २०० योजन प्रमाण वाले प्रपात से हरिकांता कुंड में गिरती है। मगरमुख की जीभिका (जिह्वा) का प्रमाण पूर्ववत् जानना चाहिये। वह प्रपात कुण्ड से उत्तर दिशा के तोरण द्वार से निकल कर हरिवर्ष क्षेत्र के मध्य भाग में रहे हुए गंधापाती नामक वृत्त वैताढ्य पर्वत से एक योजन दूर रह कर पश्चिम दिशा में ५६००० नदियों के साथ लवण समुद्र में गिरती है। यह हरिकांता नदी रोहित नदी से दुगुने प्रमाण वाली है। हरित महानदी तिगिछि द्रह के दक्षिण दिशा के तोरण द्वार से निकल कर कुछ अधिक ७४२१ योजन दक्षिण दिक्षा सन्मुख होकर पर्वत के ऊपर जाकर कुछ अधिक ४०० योजन प्रमाण वाले प्रपात से हरिकुंड में गिर कर पूर्व के समुद्र में मिलती है। शेष लम्बाई आदि हरिकान्ती नदी के अनुसार जानना चाहिये। शीतोदा महानदी तिगिछि द्रह के उत्तर दिशा के तोरण द्वार से निकल कर कुछ अधिक ७४२१ योजन उत्तर दिशा सन्मुख होकर कुछ अधिक ४०० योजन प्रमाण वाले प्रपात से शीतोदा कुण्ड में गिरती है। मगरमुख की जीभ ४ योजन लम्बी ५ योजन चौडी और १ योजन जाडी समझना चाहिए। शीतोदा कुण्ड से उत्तर दिशा के तोरण द्वार से निकल कर देवकुरु क्षेत्र का विभाग करती हुई चित्र और विचित्र कूट वाले दो पर्वतों और निषध द्रह आदि पांच द्रहों के दो भाग करती हुई ८४००० नदियों के साथ मिलती हुई भद्रशाल वन के मध्य में मेरु की पश्चिम दिशा से पश्चिम महाविदेह के मध्य भाग द्वारा एक विजय में से २८-२८ हजार नदियों के साथ मिल कर जयंत द्वार के नीचे से पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती है। शीतोदा नदी प्रवाह में ५० योजन चौडी और १ योजन गहरी है उसके बाद अनुक्रम से बढ़ती हुई मुख में (समुद्र में मिलते समय) ५०० योजन चौडी और १० योजन गहरी होती है। ___ शीता महानदी केशरी द्रह के दक्षिण तोरण से निकल कर कुंड में गिर कर मेरु पर्वत के पूर्व से पूर्वविदेह के मध्य से विजय द्वार के नीचे से पूर्व समुद्र में प्रवेश करती है। शेष वक्तव्यता शीतोदा नदी के समान जानना चाहिये। नारीकांता नदी तो उत्तर दिशा के तोरण से निकल कर रम्यक् क्षेत्र का विभाग करती हुई हरित महानदी के वक्तव्यतानुसार रम्यक् वर्ष के मध्य भाग से पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती है। नरकांता नदी महापुंडरीक द्रह में से दक्षिण दिशा के तोरण द्वार से निकल कर रम्यक वर्ष का विभाग करती है। हरिकांता नदी की वक्तव्यता के अनुसार पूर्व समुद्र में प्रवेश करती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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