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________________ स्थान २ उद्देशक ३ ९५ हरिवास और रम्यक्वास क्षेत्रों में क्रमशः गन्धापाती और माल्यवंत नामक दो वृत्त वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं यावत् ये दोनों समान हैं। इन दोनों पर्वतों पर क्रमशः.अरुण और पद्म ये दो देव रहते हैं। ये दोनों महर्द्धिक हैं यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में देवकुरु के पूर्व और पश्चिम में क्रमशः सोमनस और विदयुत्प्रभ ये दो वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं ये अश्व (घोड़े) के कन्धे के आकार वाले हैं यानी मूल में नीचे और फिर आगे ऊंचे ऊंचे होते गये हैं इनका संस्थान अर्द्धचन्द्राकार है यावत् ये दोनों समान हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर में उत्तरकुरु के पूर्व और पश्चिम में क्रमशः गन्ध मादन और माल्यवान् नामक दो वक्षस्कार पर्वत क़हे गये हैं। ये घोड़े के कन्धे के समान आकार वाले हैं इनका संस्थान अर्द्धचन्द्राकार है यावत् दोनों बिल्कुल समान हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो दीर्घ (लंबे) वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं यथा भरतक्षेत्र में दीर्घ वैताढ्य और ऐरावत क्षेत्र में दीर्घ वैताढ्य पर्वत ये दोनों पर्वत समान हैं। भरत क्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर तिमिस्र गुफा और खण्डप्रपात गुफा ये दो गुफाएं कही गई है। लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, आकार और परिधि से ये दोनों बिल्कुल समान हैं। इन में कुछ भी भिन्नता नहीं है। परस्पर ये दोनों एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं। वहां पर इन दोनों गुफाओं में क्रमशः कृतमाल्यक और नृतमाल्यक ये दो देव रहते हैं। ये दोनों महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले हैं। ऐरावत क्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वत के अन्दर दो गुफाएं कही गई है। उनमें कृतमाल्यक और नृतमाल्यक ये दो देव रहते हैं यावत् सारा वर्णन भरत क्षेत्र की गुफाओं के समान हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं यथा - चुल्ल हिमवान् कूट और वैश्रमण कूट। ये दोनों कूट लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि से बिल्कुल समान हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं यथा - महाहिमवान् कूट और वेरुलिय कूट। ये दोनों समान हैं। इसी तरह निषध वर्षधर पर्वत पर निषधकूट और रुचकप्रभ कूट ये दो कूट कहे गये हैं। यावत् ये दोनों समान हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं यथा - नीलवान् कूट और उपदर्शन कूट। यावत् ये दोनों समान हैं। इसी प्रकार रुक्मी वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं यथा - रुक्मी कूट और मणिकञ्चन कूट। यावत् ये दोनों समान हैं। इसी प्रकार शिखरी वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं यथा - शिखरी कूट और तिगिच्छ कूट। यावत् ये दोनों समान हैं। - विवेचन - जो वर्ष (क्षेत्र) की मर्यादा करने वाला हो उसे वर्षधर कहते हैं। भरतक्षेत्र के उत्तर में चुल्लहिमवान् पर्वत है और शिखरी पर्वत ऐरवत क्षेत्र के आगे है यानी शिखरी पर्वत से उत्तर में ऐरवत क्षेत्र है। ये दोनों पर्वत पूर्व और पश्चिम से लम्बाई में लवण समुद्र तक जुडे हुए है। इन पर्वतों की जीवा, लम्बाई आदि के लिये निम्न गाथाएं दी है - For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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