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श्री स्थानांग सूत्र
कूडे चेव वेसमणकूडे चेव । जंबूमंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं महाहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता तंजहा - बहुसमतुल्ला जाव महाहिमवंत कूडे चेव वेरुलिय कूडे चेव । एवं णिसढे वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव णिसढकूडे चेव रुयगप्प चेव । जंबूमंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं णीलवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तंजहा - णीलवंतकूडे चेव उवदंसण कूडे चेव, एवं रुप्पिम्मि वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तंजहा - रुप्पि कूडे चेव मणिकंचणकूडे चेव, एवं सिहरिम्मि वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तंजहा - सिहरिकूडे चेव तिगिंछिकूडे चेव ॥ ३५ ॥
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कठिन शब्दार्थ - चुल्लहिमवंते - चुल्लहिमवान्, सिहरि शिखरी, वासहरपव्वया वर्षधर
- निषध, णीलवंते - नीलवान्,
पर्वत, महाहिमवंते - महाहिमवान् रुप्पि रुक्मी, जिसढे जंबूमंदरस्स- जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के, हेमवयएरण्णवएसु हेमवत और हैरण्यवत, वासेसु क्षेत्रों में, वट्टवेयढपव्वया - वृत्त वैताढ्य पर्वत, सझवाई शब्दापाती, वियडावाई - विकटापाती, साईस्वाति, पभासे प्रभास, हरिवासरम्मएसु हरिवास और रम्यक्वास क्षेत्रों में, गंधावाई - गन्धापाती, मालवंतपरियाए - माल्यवंत, पउमे- पद्म, विज्जुप्पभे विद्युत्प्रभ, वक्खारपव्वया - वक्षस्कार पर्वत, आसखंधसरिसा - घोडे के कंधे के आकार वाले, अद्धचंद संठाणसंठिया - अर्द्ध चन्द्राकार संस्थान वाले, गंधमायणे - गन्धमादन, मालवंते - माल्यवान् दीहवेयपव्वया दीर्घ वैताढ्य पर्वत, तिमिसगुहा - तिमिस्र गुफा, खंडगप्पवायगुहा - खण्डप्रपात गुफा, कयमालए - कृतमाल्यक, णट्टमालए - नृतमाल्यक, कूडा कूट, रुयगप्पभे रुचकप्रभ, उवदंसणकूडे - उपदर्शन कूट, तिगिंछि कूडे - तिगिच्छ कूट ।
भावार्थ - जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में चुल्ल हिमवान् और शिखरी ये दो वर्षधर पर्वत अर्थात् क्षेत्र की मर्यादा करने वाले पर्वत कहे गये हैं, ये दोनों पर्वत लम्बाई चौड़ाई, ऊंचाई, उद्वेध - गहराई, संस्थान आकार और परिधि से समान हैं इनमें कुछ भी भिन्नता नहीं हैं। परस्पर ये दोनों एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मी पर्वत के विषय में जानना चाहिए । इसी प्रकार निषध और नीलवान् के लिए जानना चाहिए। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में हेमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों में दो वृत्त यानी गोल वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं उनके नाम ये हैं- शब्दापाती और विकटापाती। ये दोनों बराबर हैं, इनमें कुछ भी भिन्नता नहीं है। इन दोनों पर्वतों पर क्रमशः स्वाति और प्रभास ये दो देव रहते हैं ये महान् ऋद्धि वाले हैं यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले हैं। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में
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