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श्री स्थानांग सूत्र
चवीस सहस्साइं णव य सए जोयणाण बत्तीसे । चुल्लहिमवंतजीवा, आयामेण कलद्धं च ॥ पणयालीस सहस्सा, सयमेगं नव य बारस कलाओ । अद्धं कलाए हिमवंत, परिरओ सिहरिणो चेव ॥
१. ३८
अर्थ - चुल्लहिमवान् पर्वत की जीवा लम्बाई से २४९३२ योजन और अर्द्ध कला है इसी प्रकार शिखरी पर्वत की जीवा जानना । दोनों पर्वत भरत क्षेत्र से दुगुने विस्तार वाले १०० योजन ऊंचे, २५ योजन जमीन में गहरे और आयत (लम्बा) तथा चतुरस्र संस्थान वाले हैं। दोनों की परिधि ४५१०९ योजन और १२ ॥ कला है । जैसे चुल्लहिमवान् और शिखरी पर्वत के लिये कहा उसी प्रकार महाहिमवान् आदि पर्वतों के लिए जानना चाहिये। मेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में महाहिमवान् और उत्तर दिशा में रुक्मी पर्वत है इसी प्रकार दक्षिण में निषध और उत्तर में नीलवान् पर्वत हैं। इनका लम्बाई आदि का विशेष वर्णन 'क्षेत्र समास' नामक ग्रंथ में दिया गया है जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिये ।
पर्वतों की जमीन में ऊंडाई प्रायः ऊँचाई से चौथे भाग होती है। गोल परिधि अपनी अपनी चौडाई से तिगुनी और कुछ न्यून छह भाग युक्त होती है। चौरस परिधि लम्बाई और चौडाई से दुगुनी होती है।
जो पर्वत पल्य (पाले) के आकार के होते हैं उन्हें 'वृत्त वैताढ्य' कहते हैं। मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में हैमवत क्षेत्र में शब्दापाती और मेरु पर्वत की उत्तर दिशा में हैरण्यवत क्षेत्र में विकटापाती नाम के दो वृत्त वैताढ्य पर्वत हैं जो १००० योजन के परिमाण वाले एवं रत्नमय हैं। इन दोनों पर्वतों पर क्रमशः स्वाति और प्रभास नाम के दो देव रहते हैं कारण कि वहाँ उनके भवन हैं इसी प्रकार हरिवर्ष क्षेत्र में गंधापाती और रम्यक् वर्ष में माल्यवंत पर्वत हैं जहाँ पर क्रम से अरुण और पद्म देव रहते हैं।
जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में देवकुरु के पूर्व और पश्चिम में सौमनस और विद्युतप्रभ नाम के दो वक्षस्कार पर्वत और उत्तर कुरु के पूर्व और पश्विचम में क्रमशः गन्धमादन और माल्यवान् नाम के दो वक्षस्कार पर्वत हैं। निषध पर्वत के समीप सौमनस और विद्युतप्रभ तथा नीलवान पर्वत के नजदीक गंधमादन और माल्यवंत ये चार वक्षस्कार पर्वत हैं। ये इन वर्षधर पर्वतों के नजदीक ५०० योजन विस्तार वाले ४०० योजन ऊंचे और १०० योजन जमीन में ऊंडे (गहरे) हैं। चार वक्षस्कार पर्वतों की लम्बाई ३० हजार योजन और छह कला की है। ये वक्षस्कार पर्वत अश्व (घोडे) के स्कंध के समान और अर्द्ध चन्द्राकार संस्थान वाले हैं।
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