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________________ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध stormstrsmssttismentssertstresserterrrrrrrrrrrrrrrrrrrts अर्थात् मिष्ठान्न भोजन की स्थिति नहीं होने पर आसक्ति का कारण नहीं होने से नीरोग साधुओं के लिए भी उन कुलों में जाने का निषेध नहीं है। ___ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे अण्णयरं भोयणजायं पडिगाहित्ता, सब्भिं सब्भिं भुच्चा दब्भिं दब्भिं परिवेइ, माइट्ठाणं संफासे। णो एवं करिज्जा। सुब्भिं वा दुब्भिं वा सव्वं भुंजे णो छड्डए णो किंचिवि परिविजा॥ कठिन शब्दार्थ - सुब्भिं सुब्भिं - अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट सुगंधित पदार्थ, दुब्भिं दुब्भिंखराब खराब नि:स्वाद दुर्गंध युक्त पदार्थ, परिहवेइ - परठ दे, णो छड्डए - छोडे नहीं, जो किंचिवि परिझुविजा- किंचित् मात्र भी नहीं परठे। • भावार्थ - साधु या साध्वी गृहस्थ के घरों से आहार लेकर सुगंध युक्त स्वादिष्ट - पदार्थ खाकर दुर्गंध युक्त निकृष्ट पदार्थ परठ दे तो वह मातृ स्थान का स्पर्श करता है (दोष का पात्र होता है) अतः साधु को ऐसा नहीं करना चाहिये किन्तु सुगंधित या दुर्गंधित सरस या नीरस, जैसा भी आहार हो सब का समभाव पूर्वक उपभोग करना चाहिये न तो कुछ . छोड़ना चाहिये और न ही परठना चाहिये। _ विवेचन - साधु का आहार स्वाद के लिए नहीं संयम पालन के लिए होता है अतः सरस नीरस जैसा भी आहार प्राप्त हो उसे अच्छे बुरे का भेद नहीं करते हुए समभाव से उपभोग करना चाहिए। ___से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयरं पाणगजायं पडिगाहित्ता पुष्पं पुष्पं आविइत्ता कसायं कसायं परिढुवेइ माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करिजा। पुप्फ पुप्फेइ वा कसायं कसाए ति वा सव्वमेयं |जिज्जा णों किंचिवि परिदृविजा॥ ___ कठिन शब्दार्थ - पुष्कं पुष्पं - मनोज्ञ (अच्छे) वर्ण गंध युक्त, आविइत्ता - पीकर, कसायं कसायं - वर्ण गंध रहित (अमनोज्ञ)। भावार्थ - साधु या साध्वी गृहस्थ के घरों से जल ग्रहण करके उसमें से मनोज्ञ वर्ण गंध युक्त जल (मीठे और स्वाद युक्त पानी) को पीकर कषायैले-अमनोज्ञ वर्ण गंध वाले पानी को परठ दे तो वह मातृ स्थान का स्पर्श करता है अर्थात् साधु आचार का उल्लंघन करता है। अतः साधु ऐसा नहीं करे अपितु मीठा या कषायैला, मनोज्ञ अथवा अमनोज्ञ वर्ण गंध वाला जैसा भी पानी हो सब को पी जाय उसमें से किंचित् मात्र भी नहीं परठे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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