________________
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
कठिन शब्दार्थ - लसुणं - लहसुन, लसुणपत्तं लहसुन के पत्ते, लसुणणालं लहसुन नाल (लहसुन की डंडी), लसुणकंदं - लहसुन का कंद, लसुणचोयं - लहसुन का छिलका।
७८
भावार्थ - भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी लहसुन, लहसुन के पत्ते, लहसुन की डंडी, लहसुन का कंद, लहसुन के बाहर का छिलका तथा इसी प्रकार के अन्य कंद जो कच्चे और शस्त्र परिणत न हुए हैं उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा - अत्थियं वा, कुंभिपक्कं वा, तिंदुगं वा, वेलुयं वा, कासवणालियं वा, अण्णयरं वा, तहप्पगारं आमं असत्थ परिणयं जाव णो पडिगाहिज्जा ॥
कठिन शब्दार्थ - अत्थियं अस्थिक फल, कुंभिपक्कं - भट्टी या तथा प्रकार की कोठी में पक्कं पकाया हुआ फल, तिंदुगं - तिन्दुक फल, वेलुयं - बिल्व फल, कासवणालियं - श्री पर्णी फल ।
भावार्थ - भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी अस्थिक फल, गर्त (खड्डा) आदि में रखकर पकाया गया फल, तिंदुक फल, बिल्व फल या श्रीपर्णी फल तथा इसी प्रकार के अन्य फल विशेष जो कच्चे और शस्त्र परिणत न हों उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा - कणं वा, कणकुंडगं वा, कणपूयलियं वा, चाउलं वा, चाउलपिट्टं वा, तिलं वा, तिलपिट्ठ वा, तिलपप्पडगं वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं जाव लाभे संते णो पडिगाहिज्जा ॥
-
-
कठिन शब्दार्थ - कर्ण - धान्य के दाने, कणकुंडगं - कणों (दानों) से मिश्रित कुक्कुस (छानस) कणपूयलियं दाने वाली रोटी, चाउलं - चावल, चाउलपिठ्ठे - चावलों का आटा (ताजा) तिलं तिल, तिलपिडं तिल का आटा, तिलपप्पडगं - कच्चे तिलों
-
Jain Education International
-
की तिल पापड़ी ।
भावार्थ - भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी धान्य- शाल्यादि के
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org