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अध्ययन १ उद्देशक ६
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ताजा कूटा हुआ चावलादि का आटा कुक्कुस - कुक्कुस-चूर्ण, उक्किट्ठसंसद्वेण - गीली सचित्त वनस्पति के चूर्ण या फलों के बारीक टुकडों से भरे हुए हाथों से, असंसटे - सचित्त पदार्थों से हाथ भरे हुए नहीं है संसटे - संस्पृष्ट-अचित्त पदार्थ से हाथ भरे हुए हैं।
भावार्थ - भिक्षार्थ गया हुआ साधु साध्वी यदि किसी व्यक्ति को भोजन करते हुए देखकर मन में सोच विचार कर पहले इस प्रकार कहे - हे आयुष्मन् या आयुष्यमति ! तुम इस भोजन में से कुछ आहार मुझे दोगे? इस प्रकार कहते हुए मुनि को जानकर गृहस्थ अपने हाथ को, पात्र (थाली आदि) को अथवा कुडछी आदि अन्य किसी बर्तन विशेष को सचित्त ठंडे या हल्के गर्म जल से धोने लगे तो ऐसा करने से पूर्व ही साधु उसे देखकर कहे कि हे आयुष्मन् ! तुम अपने हाथ बर्तन आदि को इस तरह मत धोओ। यदि तुम मुझे देना चाहो तो यों ही दे दो। साधु के ऐसा कहने पर भी वह गृहस्थ हाथ पात्रादि को ठंडे या गर्म जल से धोकर या विशेष रूप से धोकर आहार देने लगे तो इस प्रकार के पूर्वकर्म वाले गीले हाथ, पात्रादि से अशनादि लेना अप्रासुक और अनेषणीय है, ऐसा जानकर प्राप्त होते हुए आहार को भी ग्रहण न करे।
- कदाचित् साधु ऐसा जाने कि गृहस्थ ने भिक्षा देने के लिए नहीं परन्तु किसी अन्य कारण से हाथ पात्रादि को धोया है जिससे दाता के हाथ पात्रादि पानी से गीले हैं फिर भी इस प्रकार लाकर दिये जाने वाले आहार को साधु अप्रासुक होने से ग्रहण न करे और यदि गृहस्थ के हाथ पात्रादि पानी से गीले नहीं हो अर्थात् उनसे पानी की बूंदे न गिर रही हो किन्तु जल से कुछ गीले हो, सचित्त रज, जल, सचित्त मिट्टी, क्षार, हडताल हिंगलु, मैनसिल, अंजन, नमक, गेरु पीली मिट्टी, सफेद मिट्टी, फिटकड़ी, ताजा आटा या बिना छाना हुआ चावलादि का आटा, कुक्कुस चूर्ण, सचित्त पत्तों आदि के चूर्ण से हाथ पात्रादि भरे हुए हों (स्पर्शित हों) तो भी इस प्रकार से दिया जाने वाला आहार आदि को अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर ग्रहण न करे।
साधु अगर ऐसा जाने कि गृहस्थ के हाथ पात्रादि सचित्त पदार्थों से स्पर्शित नहीं है किन्तु जो आहार साधु को देना चाहता है उन्हीं अचित पदार्थों से हाथ पात्रादि भरे हुए हैं, अचित्त पदार्थों से ही स्पर्श हो रहा है तो ऐसे हाथ पात्र आदि से दिये जाने वाले अशनादि आहार को साधु प्रासुक और एषणीय जानकर ग्रहण करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि गीले हाथों से या गीले पात्र से दिया
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