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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
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पुरा पेहाए तस्सट्ठाए परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्ट दलइज्जा अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा एस पडिण्णा, एस हेउ एस उवएसो जं णो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिजा से तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा एगंतमवक्कमित्ता अणावाय मसंलोए चिट्ठिजा॥ ___कठिन शब्दार्थ - पडिण्णा - प्रतिज्ञा, हेउ - हेतु, उवएसो - उपदेश, अणावायं - जहाँ किसी का आवागमन न हो, असंलोए - किसी की दृष्टि न पडती हो, तं - उसको, आयाय - जान कर।
भावार्थ - वहाँ खड़े उस साधु को देखकर गृहस्थ अशनादि आहार लाकर देगा अतः पूर्वोक्त कथन के अनुसार ऐसी प्रतिज्ञा ऐसा हेतु और ऐसा उपदेश आवश्यक है कि पूर्व में खडे याचकों को जानकर साधु ऐसी जगह खड़ा रहे जहाँ किसी का आवागमन न हो और जहाँ किसी की दृष्टि भी न पड़ती हो।
विवेचन - उन भिक्षुकों के सामने खड़ा रहने पर गृहस्थ साधु को देख कर उसे पहले भिक्षा देगा ऐसी स्थिति में उन भिक्षाचरों के भिक्षा में अन्तराय पडेगी इसलिए उनके सामने खड़ा न रहे।
से परो अणावाय मसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहटु दलइज्जा से य एवं वइज्जा-आउसंतो समणा! इमे भे असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, सव्वजणाए णिसिढे तं भुंजह वा णं, परिभाएह वा णं, तं चेगइओ पडिग्गाहित्ता तुसिणीओ उवेहिज्जा, अवियाई एयं मममेव सिया माइट्ठाणं संफासे णो एवं करिज्जा, से तमायाय तत्थ गच्छित्ता गच्छिज्जा से पुव्वामेव आलोइज्जा "आउसंतो समणा ! इमे भे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सव्वजणाए णिसिढे तं भुंजह वा णं परिभाएह वा णं सेणमेवं वयंतं परो वइज्जा आउसंतो समणा! तुमं चेव णं परिभाएंहि से तत्थ परिभाएमाणे णो अप्पणो खद्धं खद्धं डायं डायं ऊसढं ऊसढं रसियं रसियं मणुण्णं मणुण्णं णिद्धं णि लुक्खं लुक्खं से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बहुसममेव परिभाइजा॥
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