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_आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
से तत्थ परक्कममाणे पयलिज्ज वा पक्खलिज्ज वा पवडिज वा, से तत्थ पयलिजमाणे वा पक्खलिज्जमाणे वा पवडिजमाणे वा तत्थ से काए उच्चारण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणेण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूएण वा सुक्केण वा सोणिएण वा उवलित्ते सिया तहप्पगारं कायं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससिणिद्धाए पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंसि वा दारुए, जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे जाव ससंताणए णो आमजिज वा, पमजिज वा, संलिहिज्ज वा, णिलिहिज्ज वा, उव्वलिज वा, उव्वट्टिज वा, आयाविज वा, पयाविज वा। से पुवामेव अप्पससरक्खं तणं वा पत्तं वा कटुं वा सक्कर वा जाइज्जा जाइत्ता से तमायाय एगंतमवक्कमिजा एगंतमवक्कमित्ता अहे झामथंडिलंसि वा जाव अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमजिय पमज्जिय तओ संजयामेव आमज्जिज वा जाव पयाविज्ज वा॥२६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - परक्कममाणे - जाता हुआ, पयलिज - लडखडा जाय-कंपित हो जाय, पक्खलिज - फिसल जाय, पवडिज - गिर जाय, पयलमाणे - लडखड़ाता हुआ, पक्खलिजमाणे - फिसलता हुआ, पवडिजमाणे - गिरता हुआ, उच्चारेण - विष्ठा से, पासवणेण - मूत्र से, खेलेण - कफ से, सिंघाणेण - नाक के मेल से, वंतेण - वमन से, पूएण - राध से (पीव से), सुक्केण- शुक्र (वीर्य) से, सोणिएण - शोणित (रुधिर) से, उवलित्ते - उपलिप्त, अणंतरहियाए - सचित्त, पुढवीए - पृथ्वी से, ससिणिद्धाए - गीली मिट्टी से, ससरक्खाए - बारीक रज वाली मिट्टी से, चित्तमंताए - चेतना युक्तसचित्त, सिलाएं - शिला खंड से, लेलूए - ढेले से, कोलावाससि - घुण से युक्त, दारुए - लकड़ी से, जीवपट्टिए - जीव प्रतिष्ठित-सूक्ष्म जीव जंतुओं से युक्त, आमजिजघिसे, पमजिज- बार-बार पाँछे, संलिहिज - कुरेदे, णिलिहिज - निर्लेप करे, उव्वलिजझाड़े, उव्यट्टिज - उखाड़े, उबटन की भांति मले, आयाविज - धूप में सुखावें, पयाविजविशेष (पुनः -पुनः) धूप में सुखाए अप्पससरक्खं - सचित्त रज आदि से रहित, तणं - तृण, पत्तं - पत्ते, कट्ठ - लकड़ी, सक्कर - कंकर, जाइजा - याचना करे, झामर्थडिलसिदग्ध स्थडिल भूमि में।
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