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________________ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध से भिक्खू गामाणुगामं दुइज्जमाणे सव्व भंडगमायाए गामाणुगामं दुइज्जिज्जा ॥ १९ ॥ ३४ भावार्थ - ग्रामानुग्राम विचरण करते समय साधु अपने सर्व धार्मिक उपकरणों को साथ कर विहार करे । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि जिनकल्पी या प्रतिमाधारी साधु को आहार आदि के लिये तथा स्वाध्याय या शौच आदि के लिये और अपने ठहरे हुए स्थान से बाहर जाते समय अपने सभी उपकरण साथ में ले जाने चाहिये। क्योंकि जिनकल्पी या विशिष्ट प्रतिमाधारी मुनि गच्छ से अलग अकेला रहता है और उसके उपकरण भी अधिक नहीं होते हैं। सामान्य रूप से 'अछिद्र पाणिपात्र' अर्थात् जिनके हाथ की अंगुलियों को इकट्ठा करने पर बीच में छिद्र न रहे और यहाँ तक की पानी की एक बून्द भी नीचे न पड़े उसके हाथ ही पात्र का काम देते हैं इसलिए उसे 'पाणि (हाथ) पात्र' कहते हैं । जिनकल्पी मुनि के रजोहरण और मुखवस्त्रिका ये दो उपकरण तो होते ही हैं। इसके अलावा, चोलपट्टक, एक सूती, एक ऊनी वस्त्र भी रख सकता है, इस तरह ५ उपकरण हुए । छिद्रपाणि जिनकल्पी साधु पात्र रखता हैं तो उस पात्र के साथ उसे सात उपकरण रखने होते हैं जैसा कि कहा है - पात्रं पात्रबन्धः पात्रस्थापनं च पात्र केसरिका । पटलानि रजस्त्राणं च गोच्छकः पात्र निर्योगः ॥ अर्थ पात्र, पात्रों को बांधने का कपड़ा (झोली), पात्र स्थापन (पात्रों के नीचे बिछाने का कपड़ा), पात्र केसरिका (पात्रों को पोंछने का कपड़ा), पटल (पात्रों को ढकने का कपड़ा), रजस्त्राण (पात्रों को बांधते समय वे परस्पर रगड न खाय इसलिए दो पात्रों के बीच में रखा जाने वाला कपड़ा), गोच्छक (सूखे पात्रों को पोंछने का कपड़ा)। ये सातों चीजों को मिलाकर 'पात्र निर्योग' कहा जाता है इस प्रकार छिद्रपाणि साधु पात्र निर्योग और रजोहरण और मुखवस्त्रिका इस तरह नौ उपकरण, चौलपट्टा रखे तो दस उपकरण, एक चादर रखे तो ग्यारह उपकरण और एक ऊनी वस्त्र रखे तो बारह उपकरण होते हैं। इस प्रकार जिनं कल्पी साधु के आठ भेद हो जाते हैं। यथा १. दो उपकरण (मुखवस्त्रिका और रजोहरण) रखने वाला २. तीन उपकरण रखने वाला ३. चार उपकरण रखने वाला ४.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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