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अध्ययन १ उद्देशक ३
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा एसणिज्जं सिया अणेसणिज्जं सिया वितिगिच्छसमावण्णेणं अप्पाणेणं असमाहडाए लेस्साए तहप्पगारे असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा लाभे संते णो पडिग्गाहिज्जा ॥ १८ ॥
कठिन शब्दार्थ - वितिगिच्छसमावण्णेणं - विचिकित्सा-आशंका युक्त, असमाहडाएआहार अशुद्ध है इस प्रकार की लेस्साए - लेश्या से।
भावार्थ - गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ गया हुआ साधु या साध्वी यह जाने कि आहार सदोष है या निर्दोष ? यदि इस प्रकार की शंका उत्पन्न हो कि आहार अशुद्ध है तो वह उस आहार को मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
विवेचन - साधु को आहार आदि के सदोष - निर्दोष (एषणीय अनेषणीय) होने की शंका हो जाने पर उसे ग्रहण ही नहीं करना चाहिये। क्योंकि ऐसा आहार ग्रहण करने पर कई प्रकार के संकल्प विकल्प उत्पन्न हो सकते हैं जो आध्यात्मिक साधना में बाधक बनते
हैं ।
से भिक्खू गाहावइकुलं पविसिउकामे सव्वं भंडगमायाए गाहावइकुलं पिंडवाय पडियाए पविसिज्ज वा णिक्खमिज्ज वा ॥
कठिन शब्दार्थ - भंडगमायाए - धर्मोपकरण को लेकर ।
भावार्थ - गृहपति (गृहस्थ) के कुल में प्रवेश करने की इच्छा रखने वाला साधु सब धार्मिक उपकरणों को साथ लेकर पिंडपात प्रतिज्ञा (आहार प्राप्ति के उद्देश्य) से गृहपति के कुल में प्रवेश करे या निकले।
से भिक्खू बहिया विहार भूमिं वा वियार भूमिं वा पविसमाणे वा णिक्खममाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहार भूमिं वा वियारभूमिं वा पविसिज्ज वा णिक्खमिज्ज वा ॥
कठिन शब्दार्थ - विहारभूमिं भावार्थ साधु ग्राम आदि से अथवा वहाँ से वापिस आवे तो अपने
निकले।
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स्वाध्याय भूमि में वियारभूमिं मलोत्सर्ग भूमि में । बाहर स्थंडिल भूमि में या स्वाध्याय भूमि में जावे सब धार्मिक उपकरणों को साथ लेकर प्रवेश करे या
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