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अध्ययन १ उद्देशक ३ stor...................................rrrrrrrrrrrrrrr. पांच उपकरण रखने वाला ६. दस उपकरण रखने वाला ७. ग्यारह उपकरण रखने वाला ८. बारह उपकरण रखने वाला।
.. इस तरह जिनकल्पी के जघन्य २ उत्कृष्ट १२ उपकरण कहे गये हैं। थोड़े उपकरण होने से वह उन्हें अपने साथ ले जा सकता है।
से भिक्खू अह पुण एवं जाणिजा तिव्वदेसियं वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं महियं संणिवयमाणं पेहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छसंपाइमा वा तसा पाणा संथडा संणिवयमाणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सव्वं भंडगमायाए गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज वा णिक्खमिज वा बहिया विहार भूमिं वा वियार भूमिं वा पविसिज वा णिक्खमिज वा गामाणुगामं दूइजिज्जा वा॥२०॥ .. कठिन शब्दार्थ - तिव्वदेसियं - बहुत विस्तृत क्षेत्र, वासं - वर्षा, वासमाणं - बरसती हुई, पेहाए- देखकर, महियं - मिहिका (धूअर), संणिवयमाणं - पड़ती हुई, महावारण - महावायु (आंधी) से, रयं - धूल, समुद्धयं - उड़ती हुई, तिरिच्छसंपाइमा - तिरछे चलने वाले, तसा प्राणा - त्रस प्राणी, संथडा - समुदाय को। . भावार्थ - बहुत दूर तक वर्षा बरसती हुई देखकर, अंधकार रूप धूंअर गिरती हुई देखकर, आंधी चलने से धूल उड़ती हुई देखकर या टिड्डी आदि बहुत से त्रस प्राणियों को उड़ते हुए गिरते हुए देखकर साधु अपने सब धर्मोपकरणों को साथ लेकर भी आहार की प्रतिज्ञा से गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे और न ही निकले, न बाहर स्वाध्याय भूमि में या स्थंडिल भूमि में प्रवेश या निष्क्रमण करे तथा ग्रामानुग्राम विहार भी न करे।
विवेचन - ऐसे प्रसंगों पर साधु गमनागमन करेगा तो अप्कायिक जीवों की एवं अन्य प्राणियों की हिंसा होगी। अतः उनकी रक्षा के लिये साधु को वर्षा आदि के समय पर अपने स्थान पर ही स्थित रहना चाहिये।
' सूत्र नं. १९ और २० ये दोनों सूत्र जिनकल्पी या प्रतिमाधारी साधु के लिये हैं। साध्वी जिनकल्प या प्रतिमा (प्रतिज्ञा-अभिग्रह विशेष) को धारण नहीं कर सकती है इसीलिए इन दोनों सूत्रों में "वा भिक्खुणी वा" शब्द नहीं होने चाहिए। केवल 'भिक्खू' शब्द ही होना चाहिए। बहुत प्रतियों में "वा भिक्खुणी वा" शब्द है इसलिये टीकाकार ने मूल में यह
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