________________
२९
अध्ययन १ उद्देशक ३ •••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror आउसंतो समणा! अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा राओ वा वियाले वा गामधम्मणियंतियं कट्ट रहस्सियं मेहुण धम्मपरियारणाए आउट्टामो तं चेवेगइओ साइजिज्जा-अकरणिजं चेयं संखाए एए आयाणा (आययणा) संति संचिजमाणा पच्चावाया भवंति तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडि पडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - परिवायएहिं - परिव्राजकों से, परिवाइयाहिं - परिव्राजिकाओं से, एगजं- एकत्र-इकट्ठे, सद्धिं - साथ, सुंडं - मदिरा को, पाउं - पीकर, वइमिस्सं - व्यतिमिश्रबेभान (बेहोश) होकर, हुरत्था - बाहर निकलकर, उवस्सयं - उपाश्रय को, पडिलेहमाणेखोज करता हुआ, णो - नहीं, लभिजा - प्राप्त होवे, तमेव - उसी, संमिस्सीभावं - गृहस्थ आदि के साथ मिलकर, आवजिजा- रहेगा, अण्णमणे - परस्पर, मत्ते - मदोन्मत्त होकर, विप्परियासियभूए - विपरीत भाव को प्राप्त कर, इत्थीविग्गहे - स्त्री शरीर में, किलीवे - नपुंसक में, आरामंसि - उद्यान में, राओ - रात्रि में, वियाले- विकाल में, गामधम्मणियंतियं - भोग भोगने के लिए, कट्ट- प्रतिज्ञा करके, रहस्सियं - एकान्त स्थान में, मेहुणधम्मपरियारणाए - मैथुन धर्म के आसेवनार्थ, आउट्टामो - प्रवृत होवें, एगइओ - कोई अनभिज्ञ अकेला साधु, साइज्जिज्जा - स्वीकार कर ले, संखाए - जान कर, आयाणाकर्म बंध का स्थान, संचिजमाणा - कर्म संचय करता हुआ, पच्चवाया - अनेक दोष। . - भावार्थ - संखडी में गया हुआ साधु बहुत से गृहस्थों, गृहस्थ स्त्रियों, परिव्राजकों या परिव्राजिकाओं के साथ एक स्थान पर मिलेगा, कदाचित् मदिरापान करेगा, मद्यपान से बेहोश होकर अपनी आत्मा का भान भूलकर अपने उपाश्रय की खोज करेगा, उपाश्रय नहीं मिलने पर उसी स्थान पर पहुँच कर गृहस्थादि के साथ मिलजुल कर रहेगा, मदिरा के प्रभाव से उन्मत्त बना हुआ स्व स्वरूप को भूलकर स्त्री या नपुंसक पर आसक्त हो जायेगा अथवा स्त्री नपुंसक उस पर आसक्त हो जायेंगे और साधु के पास आकर कहेंगे कि हे आयुष्मन् श्रमण! हम किसी एकान्त उद्यान में या उपाश्रय में रात्रि में विकाल में अमुक समय भोग भोगेंगे। इस प्रकार वे साधु को भोग भोगने के लिए ललचा कर प्रतिज्ञाबद्ध कर लेंगे और कदाचित् अनभिज्ञ अकेला साधु उनकी भोग प्रार्थना को स्वीकार भी कर ले, अत: यह सब अकरणीय कार्य जानकर भगवान् ने संखडी में जाने का निषेध किया है क्योंकि वहाँ जाने से कर्म बंध
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org