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________________ अध्ययन १५ ३०३ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के काश्यपगोत्री पितृव्य-पिता के भाई (चाचा) का नाम सुपार्श्व था। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ भ्राता काश्यप गोत्रीय 'नंदीवर्द्धन' थे। श्रमण भगवान् महावीर की बड़ी बहिन 'सुदर्शना' काश्यप गोत्रीय थी और उनकी पत्नी का नाम ' यशोदा' था जो कौण्डिन्य गोत्रीय थी। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की पुत्री काश्यप गोत्रीय थी। उनके दो नाम इस प्रकार थे। जैसे कि - १. अनोज्जा (अनवद्या) और २ प्रियदर्शना। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की दौहित्री कौशिक गोत्र की थी। उसके दो नाम इस प्रकार थे - १. शेषवती और २. यशोमती (यशस्वती)। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पिता, माता, चाचा, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्री और दौहित्री के नाम और उनके गोत्र बताये गये हैं। . समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिजा समणोवासगा यावि होत्था, ते णं बहई वासाई समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवणिकायाणं संरक्खणणिमित्तं आलोइत्ता, प्रिंदित्ता, गरहित्ता, पडिक्कमित्ता अहारिहं उत्तर-गुणपायच्छित्ताई पडिवज्जित्ता कुससंथारं दुरुहित्ता, भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं प्रच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए संलेहणाए झूसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा, तं सरीरं विप्पजहित्ता, अच्चुए कप्पए देवत्ताए उववण्णा, तओ णं आउक्खएणं, भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं ऊस्सासेणं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति, सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति॥१७८॥ कठिन शब्दार्थ - पासावच्चिज्जा - पापित्य-भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी, संरक्खणणिमित्तं - संरक्षण के निमित्त, अहारियं - यथा योग्य, उत्तरगुण पायच्छित्ताई - उत्तर गुण प्रायश्चित्त को, कुससंथारं - कुश के संस्तारक पर, भत्तं पच्चक्खाइंति - भक्त प्रत्याख्यान स्वीकार करते हैं, अपच्छिमाए - अंतिम, मारणंतियाए - मारणांतिक, झुसियसरीराशरीर से सेवन करके, अच्चुए कप्पए - अच्युत कल्प नामक बारहवें देवलोक में, सव्वदुक्खाणमंतं - सभी दुःखों का अंत।। भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के माता-पिता पाश्र्वापत्य थे अर्थात् भगवान् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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