SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध 'वर्द्धमान' रखा। दीक्षित होने के बाद समभाव पूर्वक कठोर तपश्चर्या में प्रवृत्त होने के कारण 'श्रमण' कहलाए और घोर परीषहों में भी वे आत्मचिंतन से विचलित नहीं हुए, समभावों से उन्हें सहन करते रहे अतः देवों ने उन्हें 'महावीर' यह नाम दिया। 'सहसम्मुइए' की संस्कृत छाया 'सहसंमुदितः' की है इसका अर्थ है स्वाभाविक समभाव होने से 'श्रमण' तथा इसकी संस्कृत छाया 'सहसन्मत्त्या' भी की है। जिसका अर्थ है सन्मति सहित। अतः भगवान् महावीर स्वामी का एक नाम 'सन्मति' भी है। - समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिया कासवगोत्तेणं तस्स णं तिण्णि णामधेजा एवमाहिज्जति तं जहा - सिद्धत्थे इ वा, सेजसे इ वा, जसंसे.इ वा। समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्ठस्सगोत्ता, तीसे णं तिण्णि णामधेजा एवमाहिजति तंजहा-तिसला इ वा, विदेहदिण्णा इवा, पियकारिणी इवा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए 'सुपासे' कासवगोत्तेणं। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेट्टे भाया णंदिवद्धणे कासवगोत्तेणं, समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेट्ठा भइणी सुंदसणा कासवगोत्तेणं, समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा जसोया कोडिण्णा गोत्तेणं, समणस्स भगवओ महावीरस्स धूया कासवगोत्तेणं, तीसे णं दो णामधेजा एवमाहिजंति तंजहाआणोज्जा इ वा, पियदंसणा इ वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स णत्तुई कोसियगोत्तेणं, तीसे णं दो णामधेजा एवमाहिजति, तंजहा-सेसवई इवा, जसवई इ वा॥ १७७॥ कठिन शब्दार्थ - पित्तियए - पितृव्य-पिता के भाई अर्थात् काका, भइणी - बहिन, भज्जा - भार्या, कोडिण्णा गोत्तेणं - कौडिन्य गोत्रीया, धूया - पुत्री, णत्तुई - दौहित्री। __ भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पिता काश्यप गोत्र के थे, उनके तीन नाम इस प्रकार कहे जाते थे। यथा - १. सिद्धार्थ २. श्रेयांस और ३. यशस्वी। ____ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की माता वाशिष्ठ गोत्रीया थी। उनके तीन नाम इस प्रकार कहे जाते थे जैसे कि - १. त्रिशला २. विदेहदत्ता और ३. प्रियकारिणी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy