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________________ अध्ययन १५ २९९. rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr तओ णं समणे भगवं महावीरे पंचधाईपरिवुडे तंजहा-खीरधाईए, मज्जणधाईए, मंडावणधाईए, खेल्लावणधाईए, अंकधाईए, अंकाओ अंकं साहरिजमाणे रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरस्समल्लीणे विव चंपयपायवे अहाणुपुव्वीए संवडइ॥ कठिन शब्दार्थ - पंचधाईपरिवुडे - पंच धात्री परिवृत्त-पांच धायमाताओं से गिरा हुआ, मणिकोट्टिमतले - मणि मण्डित आंगन में, गिरिकंदरस्समल्लीणे - पर्वत की गुफा में स्थित, चंपयपायवे - चम्पक वृक्ष, अहाणुपुव्वीए - यथानुक्रम, संवढ्ढइ - वृद्धि को प्राप्त होता है। भावार्थ - जन्म के बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पांच धाय माताओं द्वारा लालन पालन होने लगा। यथा - १. क्षीर धात्री - दूध पिलाने वाली धाय २. मजन धात्रीस्नान कराने वाली धाय ३. • मंडन धात्री - वस्त्र आभूषण पहनाने वाली धाय ४. क्रीड़ा धात्री - क्रीड़ा कराने वाली धाय अर्थात् खेल खिलाने वाली और ५. अंक धात्री - गोद में खिलाने वाली धाय। वर्द्धमान कुमार इस प्रकार एक गोद से दूसरी गोद में लिए जाते हुए एवं रमणीय मणि मंडित आंगन में खेलते हुए पर्वत की गुफा में स्थित चम्पक वृक्ष की तरह क्रमशः बढने लगे। विवेचन - राजा महाराजाओं में एवं सम्पन्न वर्ग में पांच धाय माताएँ रखने की परिपाटी प्राचीन काल में प्रचलित थी। तदनुसार तीर्थंकर भगवान् के लिए भी पांच धाय माताएँ रखने का उल्लेख मिलता है। उसमें पहली धाय माता का नाम है "क्षीर धात्री"जिसका अर्थ है दूध पिलाने वाली धाय माता। परन्तु तीर्थंकर भगवान् तो अपनी जन्म देने वाली माता का भी स्तन पान नहीं करते हैं इसी प्रकार क्षीरधात्री का भी स्तन पान नहीं करते है। तो फिर प्रश्न हो सकता है कि वे बचपन से क्या आहार करते हैं ? इसके समाधान में अभिधान राजेन्द्र कोष "उसभ" शब्द के वर्णन में ऐसा उल्लेख मिलता है "देसूणगं च वरिसं, सक्कागमणं च वंसठवणा च। आहारमंगुलीए ठयंति देवा मणुण्णं तु॥१॥ इस गाथा का अर्थ करते हुए टीकाकार लिखते हैं - - टीका - किं च सर्वे तीर्थंकरा एवं बालभावे वर्तमाना: न स्तन्योपयोगं कुर्वन्ति, किन्तु आहाराभिलाषे सति स्वामेव अङ्गलिं वदने प्रक्षिपन्ति। तस्यां च आहारं अङ्गल्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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